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हिन्दू परम्परा सम्बन्धी विविध कार्यों हेतु प्रयुक्त मुद्राओं... ...65
विधि
दायें अथवा बायें हाथ को सामने की तरफ अधोमुख करते फैलायें। तर्जनी, अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली के भीतर की तरफ मोड़ें, के प्रथम पोर को तर्जनी के प्रथम पोर से स्पर्शित करें तथा मध्यमा को सीधा बाहर की तरफ रखने पर तत्त्व मुद्रा बनती है। 37
अंगूठे
तत्त्व मुद्रा
लाभ
चक्र - विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र तत्त्व - वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र - विशुद्धि एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - कान, नाक, गला, मुँह, स्वर यंत्र, आँख एवं ऊपरी मस्तिष्क ।
32. वज्रपताका मुद्रा
किसी धातु आदि कठोर या मजबूत वस्तु से निर्मित पताका वज्रपताका कही जा सकती है। यह मुद्रा हिन्दू परम्परा में वज्र की सूचक है। इसकी विधि निम्नोक्त है