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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित
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बायें अंगूठे से होठ का और बायीं कनिष्ठिका से दायें अंगूठे का स्पर्श करवायें। फिर दायीं कनिष्ठिका को ऊर्ध्व दिशा में फैलाएँ तथा दायें हाथ की शेष तीनों अंगुलियों को हिलाते रहने पर वेणु मुद्रा बनती है। 63
34. बिल्व मुद्रा
बिल्व शब्द से निम्न अर्थों का बोध होता है- बेल का पेड़, बेल का फल, छोटा तालाब या गड्ढा आदि | 64 यहाँ पर बिल्व मुद्रा का अभिप्राय बेल का फल या बेल के वृक्ष से होना चाहिए ।
विधि
बिल्व मुद्रा
अंगुष्ठं वाममुदंडितमितर करां गुष्ठकेनाथ बद्ध्वा । तस्याग्रं पीडयित्वांगुलिभिरपि च ता, वामहस्तांगुलीभिः ।। बद्ध्वा गाढं हृदि स्थापयतु विमलधी, र्व्याहरन् भारबीजं । बिल्वाख्या मुद्रिकैषा स्फुटमिह गदिता, गोपनीया विधिज्ञेः । ।
बायें अंगूठे को सीधा खड़ा करके उसे दायें अंगूठे से पकड़ें, फिर दाहिने