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66... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
विधि
हथेली को सामने की तरफ करते हुए तर्जनी, मध्यमा और कनिष्ठिका को बाहर की ओर फैलायें तथा अनामिका और अंगूठे के अग्रभाग का स्पर्श करवाने पर वज्रपताका मुद्रा बनती है | 38
वज्रपताका मुद्रा
लाभ
चक्र - मूलाधार एवं अनाहत चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मेरूदण्ड, गुर्दे, पैर, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचरण प्रणाली। 33. वन्दना मुद्रा
वन्दना मुद्रा के दो प्रकार पाए जाते हैं। उनमें प्रथम प्रकार हिन्दू एवं बौद्ध दोनों परम्पराओं में मान्य हैं जबकि द्वितीय प्रकार हिन्दू परम्परा में ही स्वीकृत है। दूसरा प्रकार नमन या अभिवादन का सूचक है। यह मुद्रा छाती के स्तर पर एक हाथ से धारण की जाती है।