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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
पर बल दिया, हिजरी सन् को राजकीय कैलेण्डर घोषित किया और दरबार में मुस्लिम त्यौहारों का मनाया जाना अनिवार्य कर दिया। इन अवसरों पर हिन्दू, मुसलमान बादशाह को भेंट देते थे। डॉ० श्रीराम शर्मा ने लिखा है कि शासन के बारहवें वर्ष की ईद पर राजा जसवंत सिंह और राजा जयसिंह ने बादशाह को हाथी भेंट किया। इसने गुजरात, कश्मीर और मध्यदेश में अनेक मन्दिर तोडे, केवल बनारस में ७२ मन्दिर इसने विध्वंस कराये थे और हिन्दू तीर्थयात्रियों पर कर लगाया था पर यह औरंगजेब की तरह न तो कट्टर था और न धर्मान्ध था। इसने बाद में मंदिर तोड़ना और तीर्थ कर बंद कर दिया था। वह नीतिकुशल था, इसलिए इसने राजनीति पर धर्म को हावी नहीं होने दिया ? जबकि
औरंगजेब की धर्मनीति ही राजनीति की संचालिका थी। इसने सुलहकूल का रास्ता पूरी तरह बन्द कर दिया। फलतः प्रजा में अशांति, विग्रह और फूट पड़ गई, साम्राज्य विखरने लगा, जगह-जगह विद्रोह होने लगे, औरंगजेब आजीवन इन्हीं बगावतों और विद्रोहों को कुचलने में थक गया और उसके जीवन की आखिरी रात भा गई।
उसकी मृत्यु के पश्चात् सं० १८०० तक कुल पांच बादशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठे पर वे नामधारी बादशाह थे। औरंगजेब के बाद अपने भाइयों का कत्ल करके बहादुरशाह गद्दी पर बैठा और पाँच वर्ष गद्दी पर रहा। उसे राजकाज की कोई परवाह नहीं थी। उसे 'शाह बेखबर' कहा गया है। उसकी मृत्यु के बाद फिर उत्तराधिकार का युद्ध हुआ और खूनखराबे के बाद जहाँदारशाह गद्दीनशीन हुआ। इसी समय सैयद बन्धुओं का उदय हुआ। इनमें बड़ा भाई अब्दुल्ला खाँ इलाहाबाद में सहायक सूबेदार तथा छोटा भाई हुसैन खाँ बिहार में नायब सूबेदार था। इन लोगों ने बहादुर शाह की मदद की थी
और तभी से शक्तिशाली होते जा रहे थे। ये लोग जहाँदारशाह से नाराज हो गये। उसने लालकुँवर नामक कुजडिन रखैल के वशीभूत होकर उसके सम्बन्धियों को बड़े-बड़े पद प्रदान कर दिए। इससे सैयद बन्धु अधिक क्रुद्ध हो गये। इसके भतीजे (अजीमुश्शान के पुत्र) फर्रुखसियर ने सैयद बन्धुओं को मिलाकर उसे कैद कर लिया और
Religions Policy of the
1. Dr. Shri Ram Sharma-The
Moghal Emperors, page 96.
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