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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास शिक्षा प्राप्त कर चुका था। सोलहवें वर्ष में उसे बहादुर का खिताब
और मंसबदारी मिल चुकी थी। वह बुन्देलों, बल्खों को युद्ध में पराजित कर चुका था, अर्थात् उसे युद्ध संचालन और शासन प्रबन्ध की कुशलता प्राप्त हो चुकी थी। साथ ही वह स्वभाव से चालाक और अवसर को पहचानने वाला व्यक्ति था। उसने दारा की उदारता और हिन्दू धर्म के प्रति रुझान का खुब लाभ उठाया। वह कट्टर सुन्नी मुसलमान था तथा क्रूर और कठोर स्वभाव का था। लेकिन औरंगजेब की यही कट्टरता और चक्रवर्ती केन्द्रीयता ने मराठों, बुन्देलों, राजपूतों, रुहेलों, सतनामियों, जाटों और सिक्खों को बागी बनाया। केन्द्रीयकरण की स्वाभाविक परिणति विघटन और विखंडन होती ही है । यही खास कारण था कि औरंगजेब एक तरफ चक्रवर्ती सम्राट था तो दूसरे छोर पर विघटित साम्राज्य का अन्तिम शासक भी था। उसे अनेक विफलतायें भी देखनी पड़ी, पर उसकी विफलता भी महान् थी ऐसा विचार लेनपूल ने व्यक्त किया है। ___औरंगजेब ने अकबर के समय से चली आती धार्मिक सहिष्णुता की नीति का त्याग कर दिया। साझी संस्कृति का जनाजा निकाल दिया। हिन्दू विरोधी नीति, बलात् धर्म परिवर्तन और मंदिरों का विध्वंश प्रारम्भ हुआ। तुलादान, प्रणाम, तिलक लगाना, झरोखा दर्शन आदि प्रथायें बन्द कर दी गई। सं० १७२६ में प्रसिद्ध काशीविश्वनाथ मन्दिर तोड़ा गया। पाठशालाओं में हिन्दू धर्म-चर्चा वजित कर दी गई। सरकारी सेवाओं का मार्ग हिन्दुओं के लिए प्रायः बन्द हो गया' । नेमिश्वर रास में नेमिचंद ने औरंगजेब की मृत्यु के पाँच वर्ष पश्चात् लिखा है कि क्र र, अन्यायी और अधर्मी राजा अपने वंश का समूल नाश करता है। यह कथन औरंगजेब के लिए सटीक सही है। उसकी अनीति के कारण मुगल साम्राज्य का समूल नाश हो गया। १८वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध का राजनीतिक इतिहास इसका स्पष्ट प्रमाण है। _ औरंगजेब की नीति का बीजवपन शाहजहाँ के समय में ही हो गया था। शाहजहाँ की माँ तो हिन्दू रानी थी किन्तु उसने किसी हिन्दू या राजपूत राजकुमारी से विवाह नहीं किया, इसलिए हरम में हिन्दू प्रभाव कम हो गया। उसने इस्लाम की उन्नति
१. श्री गोविन्दसखाराम देसाई - मराठों का नवीन इतिहास, पृ० ५०४
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