Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 15
________________ प्रस्तावना १. इन्द्रायुध स्व. ओझाजीने लिखा है कि इन्द्रायुध और चक्रायुध किस वंशके थे, यह ज्ञात नहीं हुआ, परन्तु सम्भव है कि वे राठोड़ हों। स्व. चिन्तामणि विनायक वैद्यके अनुसार इन्द्रायुध भण्डि कुलका था और उक्त वंशको वर्मवंश भी कहते थे।' इसके पुत्र चक्रायुधको परास्त कर प्रतिहारवंशो राजा वत्सराजके पुत्र नागभट द्वितीयने जिसका कि राज्यकाल विन्सेट स्मिथके अनुसार वि. सं. ८५७-८८२ है' कन्नौजका साम्राज्य उससे छीना था। बढवाणके उत्तरमें मारवाड़का प्रदेश पड़ता है। इसका अर्थ यह हुआ कि कन्नौजसे लेकर मारवाड़ तक इन्द्रायुधका राज्य फैला हुआ था। २. श्रीवल्लभ यह दक्षिणके राष्ट्रकूट वंशके राजा कृष्ण (प्रथम) का पुत्र था। इसका प्रसिद्ध नाम गोविन्द (द्वितीय) था। कावीमें मिले हुए. ताम्रपटमें इसे गोविन्द न लिखकर वल्लभ ही लिखा है, अतएव इस विषयमें सन्देह नहीं रहा कि यह गोविन्द (द्वितीय) ही था और वर्धमानपरकी दक्षिण दिशामें उसीका राज्य था बढ़वाणके प्रायः दक्षिणमें है । श. सं. ६९२ (वि. सं. ८२७) का उसका एक ताम्रपत्र भी मिला है। ३ अवन्तिभूभृत् वत्सराज यह प्रतिहार वंशका राजा था और उस नागावलोक या नागभट (द्वितीय) का पिता था जिसने चक्रायुधको परास्त किया था। वत्सराजने गौड़ और बंगालके राजाओंको जीता था और उनसे दो श्वेत छत्र छीन लिये थे । आगे इन्हीं छत्रोंको राष्ट्रकूट गोविन्द (द्वितीय) या श्रीवल्लभके छोटे भाई ध्र वराज ने चढ़ाई करके उससे छीन लिया था और उसे मारवाड़की अगम्य रेतीली भूमिकी ओर भागनेको विवश किया था। ओझाजी ने लिखा है कि उक्त वत्सराजने मालवाके राजापर चढ़ाई की और मालवराजको बचानेके लिए ध्रुवराज उसपर चढ़ दौड़ा। ७०५ में तो मालवा वत्सराजके ही अधिकारमें था क्योंकि ध्रुवराजका राज्यारोहणकाल श. सं. ७०७ के लगभग अनुमान किया गया है। उसके पहले ७०५ में तो गोविन्द (द्वितीय) (श्रीवल्लभ ) ही राजा था और इसलिए उसके बाद ही ध्रुवराजकी उक्त चढ़ाई हुई होगी। उद्योतन सूरिने अपनी कुवलयमाला जावालिपुर या जालोर ( मारवाड़ ) में तब समाप्त की थी जब श. सं. ७०० के समाप्त होने में एक दिन बाकी था। उस समय वहाँ वत्सराजका राज्य था अर्थात् हरिवंशकी रचनाके समय ( श. सं. ७०५ में ) तो ( उत्तर दिशाका ) मारवाड़ इन्द्रायुधके अधीन था और (पूर्वका) मालवा वत्सराजके अधिकार में था ! परन्तु इसके ५ वर्ष पहले ( श. सं. ७०० ) में वत्सराज़ मारवाड़का अधिकारी था । इससे अनुमान होता है कि उसने मारवाड़से ही आकर मालवापर अधिकार किया होगा और उसके बाद ध्रुवराजकी चढ़ाई होनेपर वह फिर मारवाड़की ओर भाग गया होगा। श. सं. ७०५ में वह अवन्ति या मालवाका शासक होगा। अवन्ति बढ़वाणकी पूर्व दिशामें है ही। परन्तु यह पता नहीं लगता कि उस समय अवन्तिका राजा कौन था, जिसकी सहायताके लिए राष्ट्रकूट ध्रुवराज दौड़ा था। ध्रुवराज (श. सं. ७०७) के लगभग गद्दीपर आरूढ हुआ था। इन सब बातोंसे हरिवंशकी रचनाके समय उत्तरमें इद्रायुध, दक्षिणमें श्रीवल्लभ और पूर्व में वत्सराजका राज्य होना ठीक मालूम होता है। १. देखो, सी. पो. वैद्यका 'हिन्दू भारतका उत्कर्ष': पु. १७५ । २. म म. ओझाजी के अनुसार नागभटका समय वि.सं. ८७२-८६० तक है। ३. इण्डियन ऐण्टिक्वेरी : जिन्द५.प.१४६ । ४. एपिग्राफि आ इण्डिका : जिन्द६,प, २७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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