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अनेक निर्देश मेरे लिए अत्यन्त उपयोगी हुए हैं। इस पुस्तक के सम्बन्ध में 'अंतध्वनि' लिखकर तो माताजी ने मेरे प्रति अपने वात्सल्य को ही लिपिबद्ध कर दिया है। मेरे गुरु श्रीमान् पण्डित जगन्मोहनलालजी सिद्धान्तशास्त्री से मुझे पग-पग पर जो प्रेरणा, परामर्श और प्रोत्साहन मिला, वह मेरा सहज प्राप्तव्य है। ये सभी गुरुजन मेरे लिए प्रणम्य हैं । उन सभी के आशीष का पात्र बन सका इसके लिए मैं अपने भाग्य की सराहना करता हूँ। - नेमिचन्द्र सिद्धान्तवर्ती और चामुण्डराय आदि ऐतिहासिक पात्रों के चित्रण में डा० ज्योति प्रसाद जैन की सामग्री का मैंने उपयोग किया है। गोम्मटसार में उनके सम्पादकीय से और पण्डित कैलाशचन्द्रजी प्रस्तावना से तथा आर्यिका विशुद्धमती माताजी की 'त्रिलोकसार' की टीका में पण्डित पन्नालालजी साहित्याचार्य की प्रस्तावना से भी इन पात्रों के विषय में उपयोगी सूचनाएं प्राप्त हुई हैं। दृष्टियुद्ध के अंकन की कल्पना श्री मिश्रीलाल जैन के काव्य 'गोमटेश्वर' की पंक्तियों से प्रस्फुटित हुई है। अजितसेन आचार्य और महासती अत्तिमब्बे का जीवन परिचय श्री जी० ब्रह्मप्प के उपन्यास 'दान चिंतामणि' से लिया गया है। श्री राखालदास वन्द्योपाध्याय की 'पाषाण-कथा' ने मेरे चन्द्रगिरि को बोलने की प्रेरणा दी है । उक्त सभी महानुभावों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए मैं स्वीकारना चाहता हूँ कि इस उपन्यास में मेरा अपना विशेष कुछ नहीं है। उपवन से कुछ फूल पत्तियाँ एकत्र करके गुलदस्ते के निर्माण में माली की जो भूमिका होती है, पुराण और इतिहास से कुछ रोचक प्रसंग लेकर यहाँ गूंथ देने का वैसा ही प्रयत्न मैंने किया है। अयोध्या के वृद्ध महामन्त्री, बाहुबली की बल्लभा जयमंजरी, चामुण्डराय के परिकर में सरस्वती और सौरभ, पण्डिताचार्य और अम्मा जैसे पात्रों को अवश्य, मेरी कल्पना ने गढ़ा है। उनकी प्रासंगिकता को मैंने सिद्ध भी करना चाहा है।
पौराणिक प्रसंगों का उल्लंघन न हो, इतिहास की रेखाओं का अतिक्रमण न हो ऐसी सावधानी बर्तते हुए, जहाँ भी संधि मिली वहाँ कल्पना की तूलिका से उन रेखाओं में रंग भरने की चेष्टा मैंने की है। पात्रों की सहज मानवीय संवेदनाओं को मुखरता प्रदान करने का जहाँ अवसर मिला, वहाँ मेरी लेखनी स्वतन्त्रतापूर्वक चली है। इतिहास के ढांचे पर उपन्यास के आभरण-अलंकार सजाने के लिए यह आवश्यक भी था। उर्दू शब्दों से बचने की सावधानी में कुछ दुरूह शब्दों के प्रयोग की मेरी बाध्यता रही है, पर सामान्य हिन्दी पाठक के लिए यह भाषा दुर्गम नहीं है ऐसा मेरा विश्वास है। दो जगह मुझे ऐसा लगा कि भावों की कोमलता को व्यक्त करने के लिए वैसी कोमल शब्द-योजना मैं नहीं कर पा रहा हूँ, वहाँ मुझे काव्य का सहारा लेना पड़ा है। बाहुबली के वन-गमन के समय जयमंजरी की भावनाओं का चित्रण और गुल्लिका-अज्जी के अंतर्धान हो जाने का दृश्य, कविता
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