Book Title: Gomtesh Gatha
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ प्रयास था। उनकी यह पुस्तक भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुई है। उपरोक्त सभी प्रयत्न श्रमसाध्य रहे हैं । वे अपने आप में परिपूर्ण भी हैं, परन्तु श्रवणबेलगोल का अतीत बहुत समृद्ध, बड़ा घटनापूर्ण और बड़ी विविधताओं से भरा है। उसकी वह सारी समृद्धि, उन सब घटनाओं के सूचक सूत्र, और उन सारी विविधताओं के सैकड़ों संकेत श्रवणबेलगोल में तथा उसके आसपास के शिल्प में, शिलालेखों में, साहित्य में और जनश्रुतियों में बिखरे पड़े हैं। इनका विधिवत अध्ययन-प्रकाशन अभी हुआ नहीं है। इनमें से अधिकांश आज तक अछुते हैं, और धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं । इतिहास की इन मणियों को समय रहते बटोरकर, तारतम्य के सूत्र में गूंथकर, एक माला बनाने की आवश्यकता है। निश्चय ही वह माला गोमटेश्वर के चरणों की शोभा में वृद्धि करेगी। यह कार्य कठिन तो है पर बड़े महत्व का है, बहुत आवश्यक है। सहस्राब्दी महोत्सव के इस ऐतिहासिक अवसर पर इस महान् अनुष्ठान का संकल्प लेकर, गोमटेश्वर के भक्त इसका प्रारम्भ करेंगे ऐसा मुझे विश्वास है। जब तक ऐसा कोई अधिकृत और सांगोपांग लेखन सामने नहीं आता तब तक, पाठकों को उस अतीत की समृद्ध झांकी का दर्शन कराने की भावना से, भक्तिवश मैं यह छोटा-सा प्रयास कर रहा हूँ। गोमटेश के चरणों की महत्ता ही मेरे इस प्रयत्न को सफल करेगी। ___ गोमटेश्वर प्रतिमा के निर्माण में प्रेरणा स्रोत की तरह, सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य को जैसा मैंने अपनी कल्पना में देखा है, इस सहस्राब्दी प्रतिष्ठापना एवं महामस्तकाभिषेक महोत्सव की सारी संयोजना के पीछे, उसी प्रकार एलाचार्य मुनि विद्यानन्दजी साक्षात् बैठे हुए हैं। मुनिजी ने बड़े प्राण वान प्रसंगों की प्रेरणा जैन समाज को दी है। भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाण महोत्सव वर्ष में स्व० साहू शान्तिप्रसादजी और श्रीमती रमारानी जैन की लगन और परि. श्रम ने उनकी कल्पना को साकार किया था। आज इस सहस्राब्दी महोत्सव में स्वस्ति श्री चारुकीति भट्टारक स्वामीजी और श्रीमान् श्रेयांसप्रसादजी जैन के सहयोग से अनेक ऐतिहासिक कार्य श्रवणबेलगोल में हो रहे हैं। महोत्सव के प्रसंग में गोमटेश की विश्वव्यापिनी ख्याति हो रही है। अब मुनिजी 1985 में आनेवाले आचार्य कुन्दकुन्दाब्दी-सहस्राब्दी महोत्सव की योजना को लेकर ज्ञान रथ के देशव्यापी संचरण की कल्पना को आकार देने में लग गये हैं। एलाचार्य मुनिजी और भट्टारक स्वामीजी ने इस उपन्यास के अनेक प्रसंगों को सुना है, सराहा है। इससे मेरा उत्साहवर्धन हुआ है। इस कलिकाल में भी दुर्द्धर तपश्चरण के आराधक, आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने अनुकम्पापूर्वक इस उपन्यास के अनेक प्रसंगों को देखकर, या श्रवण करके, अनेक उपयोगी परामर्श देने की कृपा की है । आर्यिका विशुद्धमती माताजी ने बड़े परिश्रमपूर्वक उपन्यास के सैद्धान्तिक तथ्यों का संशोधन किया है। उनके

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 240