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गोल का चन्द्र गिरि पर्वत, निश्चित ही उसके पहले भी तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध रहा होगा। किसी अनजानी और अप्रसिद्ध भूमि पर इतने बड़े संघ का शरण लेना और इतने महान् आचार्य के द्वारा उसे सल्लेखना के लिए चुना जाना स्वाभाविक नहीं लगता । मुनिजन शान्त निराकुल तपोभूमि पर ही सल्लेखना धारण करते थे। चन्द्रगुप्त की तपस्या के बाद तो चन्द्रगिरि की मान्यता बढ़ती ही रही। दसवीं शताब्दी तक आते-आते यह तीर्थ बहुत ख्यात हो चुका था । एक अतिशय प्राचीन तीर्थ और तपोवन के रूप में आसेतु हिमालय इसकी प्रसिद्धि हो चुकी थी। ___ चामुण्डराय गंग राजवंश के प्रतापी सेनापति थे। गोमट उन्हीं का प्यार का नाम था। बाहुबली के दर्शन के लिए उनकी माता कालल देवी का प्रण एक दिन चामुण्डराय को चन्द्रगिरि तक खींच लाया। संयोग से यहीं उन्हें बाहुबली की प्रतिमा के निर्माण की प्रेरणा प्राप्त हई, यहीं उसे साकार करने की अनुकूलता दृष्टिगोचर हुई। फिर उनके अटल संकल्प ने यह लोकोत्तर निर्माण यहाँ उनके हाथ से करा दिया। चामुण्डराय इस प्रतिमा के निर्माण के पूर्व ही राजनीति में, वीरता में, धर्म के अध्ययन मनन में और साहित्य रचना में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके थे। गोमटेश प्रतिमा की प्रतिष्ठापना के तीन वर्ष पूर्व ही उनके दोनों ग्रन्थों, 'चामुण्डराय पुराण' और 'चारित्रसार' की रचना सम्पन्न हो चुकी थी। धार्मिक प्रवृत्ति के लिए और वीरता के लिए अनेक उपाधियों से उन्हें भूषित किया जा चुका था।
दक्षिण भारत के इतिहास में आठवीं से लेकर बारहवीं शताब्दी ईस्वी तक, पाँच सौ वर्ष का काल जैन धर्म और जैन संस्कृति का 'स्वर्णिम काल' कहा जाने योग्य है। इस कालावधि में अनेक प्रभावक आचार्य और मुनि हुए । एक से बढ़कर एक दानशील गृहस्थ, तथा कल्पना के धनी लेखक और कवि इसी काल में इस भूमि पर हुए । अनेक निर्माताओं ने सैकड़ों मन्दिर और हजारों लाखों प्रतिमाओं का निर्माण इसी अवधि में कराया। विशेषकर कर्नाटक के कला-जगत् ने और कन्नड़ साहित्य ने महत्वपूर्ण और चिरस्थायी समृद्धि प्राप्त की। इस अवधि में वहाँ के बहुतेरे राजवंश, पल्लव, पाण्ड्य, पश्चिमी चालुक्य, गंग, राष्ट्रकूट, कलचुरी और होयसल, प्राय: सभी, धार्मिक सहिष्णुता से युक्त रहे। इन शासकों के द्वारा, या इनकी छत्रछाया में अनेक भक्तों के द्वारा, जैन संस्कृति के निर्माण, संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान मिलता रहा। उस गौरवपूर्ण काल की स्मृति दिलानेवाले इतिहास और कला के प्रमाण आज भी कर्नाटक के गाँव-गाँव में बिखरे हुए हैं।
जैन धर्म के इस उत्कर्ष काल में गंगवंश का शासनकाल, वास्तविक स्वर्णकाल था । गोमटेश्वर बाहुबली की यह अद्भुत प्रतिमा इसी काल की देन है। एक ही पाषाण में निराधार गढ़ी गयी, संसार की यह सबसे ऊँची और अद्वितीय पाषाण प्रतिमा है। मनोज्ञता और प्रभावकता में भी इसका कोई जोड़ नहीं है। इतने
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