________________ // अहं॥ श्रीमान् शेठ गोड़ीदासजी। जिनकी पुण्यस्मृति में यह अपूर्व ग्रंथ प्रकाशित किया जाता है, वे गृहस्थ होते हुए साधुवृत्तिवाले थे। व्यवहारकुशल होते हुए निश्चय में खूब श्रद्धालु थे / सांसारिक कार्यों को करते हुए मी उदासीनवृत्तिवाले थे। कालेज- हाईस्कूल वगैरह की आधुनिक अंग्रेजी के विद्वान् नहीं होते हुए भी बड़े बड़े ग्रेन्यूएटों को भी ज्ञानचर्चा में पास्त करनेवाले थे। सेठ गोड़ीदातनी क्रियाकांड में खूब माननेवाले-आचरण करनेवाले होते हुए भी ज्ञान के सच्चे उपासक, उपासक ही नहीं, प्रचारक भी थे। स्थिति के गर्मश्रीमंत-सुख की आधुनिक सामग्रियों से सम्पन्न रहते हुए भी त्याग और वैराग्य से वे ओतप्रोत रहते थे। संक्षेपसे कहा जाय तो, सेठ गोडीदासनी, याने धर्म की मूर्ति; सेठ गोड़ीदासजी, याने एक परोपकारी गृहस्थ; सेठ गोड़ीदासनी, याने जैन समाज का एक रत्न; और सेठ गोड़ीदासजी, याने गृहस्थों का एक सच्चा आदर्श। - आज भोपाल का नाक, सेठ गोड़ीदासजी, इस संसार में नहीं हैं, परन्तु उनकी धर्मशीलता, उनकी परोपकारिता, उनके नाश /