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[ ९) गयाहै.उसकोसमझकर उनकेपक्षके अनुयायीविद्वान् पुरुषों को उनकी सब भूलोको क्रमशः अवश्यही सुधारना योग्य है,तथा इस ग्रंथमेभी जो कोई बात शास्त्र विरुद्ध देखने में आवे, तो जरूर मैरेको लिख भेजना. लिखने वालेका उपकार मानकर अपनी भूलको अवश्यही स्वीकार करूंगा, और दूसरी आवृत्तिमें उसको सुधार लूंगा.
यह ग्रंथ विलंबसे प्रकट होनेका कारण । इस ग्रंथकी रचनाका कारण ग्रंथकी आदिमेही लिखाहै, तथा सुबोधिका,किरणावलीआदिककी खंडनमंडनसंबंधी भूलोका कारण तो प्रकटही है। और यह ग्रंथ छपनेपर शीघ्रही प्रकट होने वालाथा. मगर कितनेही महाशयोका कहनाथा कि-यदि मुनिमंडलकी सभाम, विद्वानोंकी समक्ष,इस विषयका शास्त्रार्थसे निर्णय हो जावे,तो बहुत ही अच्छा होवे,और तीन वर्ष पहिले दो भाद्रपद होनेसे इस विवाद के निर्णय करनेकी चर्चाभी खूब जोरशोरसे चलीथी,तब मैनेभी'मुंबई' से 'पर्युषणा निर्णयका शास्त्रार्थ' करने संबंधी विज्ञापन छपवाकर जाहिर कियाथा. उसपर आनंदसागरजी और शांतिविजयजी लोकलज्जासे हां हां करने लगेथे,तो भी बीच में व्यर्थही आडी बातें निकालकर चुप बैठ गये, इसका खुलासा आगे लिखूगा. और अन्य कोईभी मुनि सभामें निर्णय करनेको तैयार नहीं हुए, इसलिये अब यह ग्रंथ इतने विलंबसे प्रकाशित किया जाता है. यह ग्रंथ एक ह जार पृष्टके लगभग होनेसे, ४ भागोंमें अनुक्रमसे यथा अवसर प्र. फट होता रहेगा. और मंगवाने वाले साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका. यति-श्रीपूज्य-ज्ञान भंडार-लायब्रेरी और साक्षर वर्ग सर्थको बिना किं मतसे भेट भेजा जावेगा।
१-दखिये एक वहेम ।। तपगच्छके कितनेक मुनिमहाराजौने अपनी समाजम यहभी एक तरहका वहेम ठसादिया है,कि-'अधिकमहीने में विवाह-सादी वगैरह शुभकार्यलोगनहींकरतेहैं,उसीतरह अपनेभी अधिकमहीनेमेपर्युषणा पर्वादि धार्मिककार्य नहीं हो सकते हैं, मगर इस बातपर तत्त्व दृष्टि से विचार कियाजावे तो यहभी एकतरहक एकांतआग्रहसे झूठाही घहेमहै,क्योंकि विधाहादि मुहूर्त्तवाले कार्य तो मास,पक्ष,तिथि,वार नक्षत्रादि देखकर, वर्ष छ महीने आगे पीछेभी करते हैं. परंतु बिनर' मुहूर्त्तके लोकोत्तर धर्मकार्य तो नियमित दिवससे आगेपीछे कभीनहीं
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