Book Title: Bhagwati Sutra Vandana
Author(s): Pradyumnasuri, Kantibhai B Shah
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 15
________________ श्री विबुधप्रभसूरि महाराजरचित ॥ श्री विवाहप्रज्ञप्तिः ५. - अङ्गस्तोत्रम् ॥ चतुर्विंशश्रीमज्जिन विततवंशध्वजलते ! सुधर्मस्याम्युद्यद् - वदन विधुचन्द्रातपतते । नव-स्फुर्जत् - तत्त्वप्रकटनकलादीपकलिके ! विवाहप्रज्ञप्ते ! जय जय जय त्वं भगवति ! ॥ १ ॥ शिखरिणीवृत्तम् । जितात्मा षण्मासावधिसमयसंसाधनपरः, सहायैः सम्पन्नो गतविकृतिकाचाम्लतपसा । उपास्ते भक्त्या श्री भगवति गतक्लान्तिमनिशं; महामन्त्रं यस्त्वां स भवति महासिद्धि भवनम् ॥ २ ॥ शिवश्रीवश्यत्वं विकटविपदुच्चाटनघटां, समाकृष्टिं सिद्धेविषयमनसो देषणविधिम् । विमोहं मोहस्य प्रभवदशुभस्तम्भविभवं; ददत्या मन्त्रत्वं किमिव भगवत्या न भवति ? ॥ ३ ॥ महाधु रत्नाढ्यं प्रसृमरसुवर्णं निधिमिव, क्षमा-संवीतं त्वां सुभग ! भगवत्यङ्ग कृतिनः । तपस्यन्तो ज्ञानाञ्जननिचितसद्दर्शनतया; लभन्ते ये ते स्युर्नहि जगति दौर्गत्य भवनम् ॥ ४ ॥ गभीरः सद्रत्नो दिशि विदिशि विस्मेरमहिमा, क्षमाभृद्भिः सेव्यो जयति भवत्यङ्गजलधिः । कवीन्द्राः पर्जन्या इव यमुपजीव्य प्रकरणा - ऽमृतैर्वृष्टिं चक्रुः कटरि बहुधान्योपकृतये ॥ ५ ॥ अलीकार्तिच्छेदो विशदतरता दर्शनविधौ, विभेदोऽन्तर्ग्रन्थेनिहृदयशुद्धिर्विमलता । શ્રી ભગવતીસૂત્ર-વંદના

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