Book Title: Bansidhar Pandita Abhinandan Granth
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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१६. जयपुर खानिया तत्त्वचर्चा और उसकी समीक्षाके अन्तर्गत उपयोगी प्रश्नोत्तर १, २, ३, ४ की सामान्य समीक्षा
खण्ड ४ : दर्शन और न्याय १. भारतीय दर्शनोंका मूल आधार २. जैनदर्शनमें प्रमाण और नय ३. ज्ञानके प्रत्यक्ष और परोक्ष भेदोंका आधार ४. जैनदर्शनमें नयवाद ५. अनेकान्तवाद और स्याद्वाद ६. स्याद्वाद दर्शन और उसके उपयोगका अभाव ७. दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोगका विश्लेषण ८. जैनदर्शनमें दर्शनोपयोगका स्थान ९. जैनदर्शनमें वस्तुका स्वरूप : एक दार्शनिक विश्लेषण १०. जैनदर्शनमें सप्ततत्त्व और षद्रव्य ११. अर्थमें भल और उसका समाधान
खण्ड ५ : साहित्य और इतिहास १. वीराष्टकम्-समस्या-कान्ताकटाक्षाक्षतः (क्षताः) २. समयसारकी रचनामें आचार्य कुन्दकुन्दकी दृष्टि ३. तत्त्वार्थ-सूत्रका महत्त्व ४. जैन व्याकरणकी विशेषताएँ ५. षट्खण्डागमके "संजद" पदपर विमर्श ६. सांस्कृतिक सुरक्षाकी उपादेयता ७. जैन संस्कृति और तत्त्वज्ञान ८. युगधर्म बननेका अधिकारी कौन ९. ऋषभदेवसे वर्तमान तक जैनधर्मको स्थिति
खण्ड ६ : संस्कृति और समाज १. हमारी द्रव्य पूजाका रहस्य २. साधुत्त्वमें नग्नताका महत्त्व ३. जैनदृष्टिसे मनुष्योंमें उच्च-नीच व्यवस्थाका आधार ४. भगवान् महावीरका समाज दर्शन ५. जैन मंदिर और हरिजन । ६. भारतीय संस्कृतिके सन्दर्भ में हिन्दु शब्दका व्यापक अर्थ .७. परिशिष्ट
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