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[ भाग १८
बाबू साहब ने जैन समाज का बड़ा उपकार किया, किन्तु उसने उनकी स्मृति में क्या किया। अपने उपकारी को भी भुला देना सब से बड़ी अकृतज्ञता है । किन्तु वह इस तरह न जाने कितनों को भुला चुका है। अतः उससे इस सम्बन्ध में अब कुछ कहना तो बेकार ही है । किन्तु उनके सुपुत्रों के सामने हमें एक दो सुझाव अवश्य रखना है । एक तो जैन - सिद्धान्त - भास्कर के ऊपर बा० देवकुमार जी का एक छोटा सा ब्लाक अवश्य रहना चाहिये। दूसरे उनके नामकी प्रन्थमाला चालू रहनी चाहिये। वैसे भवन तो उनका जीवित स्मारक है ही ।
भास्कर