________________
२ / अस्तेय दर्शन
चारित्र के भेद :
बात यह है- एक होता है वाह्याचार और दूसरा होता है आन्तरिक आचार | जैन-धर्म ने जब इस प्रकार आचार की व्याख्या की तो मानव के अन्तर्जीवन और वाय-जीवन को ध्यान में रखकर की। मनुष्य का वाह्य जीवन आप सब के सामने है, अतः उसे अधिक व्याख्या की आवश्यकता नहीं है। हाँ, अन्तर्जीवन मानव का निगूढतम भाव है, जिसकी जानकारी साधक के लिए अत्यन्त आवश्यक है। अन्तर्जीवन अपने इस दृश्य पिण्ड की आड़ में अदृश्य है, छुपा हुआ है और वहीं हजारों भाव सृष्टियाँ बनाता है और बिगाड़ता है। सृष्टि और प्रलय का उसका यह व्यापार बाहर नहीं दिखलाई देता ।.
हाँ, तो इस आन्तरिक जगत् में जब तक साधना की भावना नहीं पनपती और ग्रहण किये हुए व्रत या नियम के लिए ठीक तरह चरित्र का बल उत्पन्न नहीं होता तो बाहर के व्रतों और नियमों का क्या मूल्य है ? बाहरी व्रत और नियम तो आन्तरिक आचार की रक्षा के लिए हैं, अन्दर की रक्षा के लिए चहार दीवारी हैं ।
अपने आप में जो दीवारें खड़ी हैं, वे मिट्टी और पत्थर के रूप में खड़ी हैं। यदि उनके अन्दर कुछ भी नहीं है, रिक्तता है, कोई व्यक्ति नहीं है, केवल दीवारें ही दीवारेंहैं, तो उनका अपना क्या मूल्य है ? दीवारों का मूल्य तभी है, जब वहाँ सम्पत्ति बिखरी हो और आदमियों की चहल-पहल हो। इनकी रक्षा के लिए ही दीवारें खड़ी की जाती हैं और दरवाजों पर ताले लगाये जाते हैं । यही उन दीवारों की सार्थकता है।
तो जो बात आप यहाँ समझ जाते हैं, वही जीवन के सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिए। जीवन में, अन्दर में, अहिंसा और सत्य के रत्न बिखरे हुए होने चाहिए । जितनी जीवन की साधनाएँ हैं, उनमें एक से एक बहुमूल्य गुण होने चाहिए। उनकी रक्षा के लिए ही बाहर के क्रियाकाण्ड की दीवारें हमें खड़ी करनी हैं। जीवन में यदि तत्त्व है, सत्य है और अन्दर में चारित्र बल है, आध्यात्मिक बल, आध्यात्मिक ऐश्वर्य और आध्यात्मिक साम्राज्य है, तो उनकी कुछ भाव-भंगिमाँ, ठीक-ठीक रूप में, हमारे आन्तरिक जीवन की रक्षा करेंगी ।
कभी-कभी ऐसा होता है कि अन्दर का घर खाली है, अन्दर में कुछ भी नहीं है, किन्तु बाहर बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी हैं ! सिवाय वहम के, घर में कुछ नहीं होता ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org