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३८/ अस्तेय दर्शन
जो अपनी प्रामाणिकता के कारण जनता का विश्वास-भाजन बनेगा, वह अपने आध्यात्मिक जीवन को ऊँचा उठा सकेगा और लोक-दृष्टि से भी टोटे में नहीं रहेगा। मगर ऐसा करने के लिए पहले-पहल प्रलोभन का त्याग करने की आवश्यकता है और कदम-कदम पर बड़े संयम की अपेक्षा है। आरम्भ में थोड़ा नफा लेना शुरू कर दिया तो आगे चलकर वह थोड़ा नफा ही उसके लिए बड़ा नफा बन जायगा। हमारे आचार्यों ने कहा है
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थञ्च चिन्तयेत् । पढ़ो तो लूट मत करो। यह मत करो कि यह भी पढ़ लिया और वह भी पढ़ लिया और दुनिया भर की किताबों को पढ़ लिया। अति अध्ययन जीवन में गहराई पैदा नहीं करेगा।
इसी प्रकार धन को भी एक बारगी ही लूट लेने की हवस जीवन को ऊँचा नहीं उठने देवी।
खेत में एक बार ही मूसलधार वर्षा हो जाय और जल-थल एक कर दे तो इस रूप में पड़ा हुआ पानी खेती को बनाता है या बिगाड़ता है ? ऐसी वर्षा फसल को विनष्ट कर देगी और जमीन को भी बर्बाद कर देगी। किन्तु सावन और भादों में, जब आकाश में झूमती हुई घटाएँ आती हैं और रिमझिम बूंदें बरसती हैं, यह एक-एक बूंद भारतवर्ष की भूमि पर सोना-चाँदी उगलती है। फलतः बड़ी सुन्दर फसल उपजती
हैं।
स्मरण रक्खो कि एकदम से आया हुआ पानी का प्रवाह कुछ देकर नहीं, लेकर जाता है, सहसा आई हुई बाढ़ किसी का भी कल्याण नहीं करती, बल्कि मुसीबतें ढा देती है, इसी प्रकार सहसा बिन श्रम और बिना प्रामाणिकता के प्राप्त हुआ धन भी कल्याणकारी नहीं होता। न्याय से प्राप्त धन : . हमारे यहाँ के कमाई करने वालों को चाहिए कि वे रुपयों की बाढ़ के रूप में कमाई न करें-छापामार बन कर दुनिया की फसल को नष्ट न करें । जो छापामारी करते हैं, वह अपने परिवार पर भी अच्छे संस्कार नहीं छोड़ते। परिवार में भाई-भाई मैं और माता-पिता में भी पारस्परिक सद्भावना क्यों दिखाई नहीं देती? दूसरों का
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