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५८ / अस्तेय दर्शन सुखी बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। यह उसका कर्तव्य है, उत्तरदायित्व है। अगर राजा इसे भली भाँति निभाता है तो वह साहूकार है ; अगर नहीं निभाता तो वह चोर के अतिरिक्त और क्या हो सकता है ?
यहाँ पर राजा के सम्बन्ध में जो विचार किया गया है, वही राज्याधिकारी के सम्बन्ध में भी समझना चाहिए।
इसी तरह आपने एक मजदूर रक्खा। आप उससे काम लेते हैं, किन्तु वह काम करते-करते निगाह चुराकर बातें करने लगता है अथवा यह सोच कर कि जिस वेग से मैं काम कर रहा हूँ, इस तरह तो यह काम शीघ्र ही समाप्त हो जायगा, बस वह हाथ पैर हिलाता हुआ तो दिखाई देता है, किन्तु काम धीरे-धीरे करता है। तो जो मजदूर जानबूझ कर, बेईमानी से, काम में ढिलाई कर रहा है, उसे चोर कहते हैं या साहूकार ? वह काम का चोर है, अर्थात् अपने कर्तव्य का चोर है। ____ घर में कोई बहिन सशक्त और स्वस्थ है ; फिर भी समय पर रोटी पानी का कामं नहीं करती, बच्चों की सफाई का काम नहीं करती, ठीक समय पर झाडू-बुहारी का काम नहीं करती, बीमार की सेवा-शुश्रूषा का काम नहीं करती, बूढ़ों को समय पर भोजन बना कर नहीं खिलाती और पड़ी-पड़ी आलस्य में समय निकाल देती है, तो जैसे नौकर अपने कर्तव्य का चोर है, उसी प्रकार यह बहन भी अपने कर्तव्य का पालन्न न करने के कारण चोर है।
इसी प्रकार कोई विद्यार्थी घर से बाहर किसी दूसरे नगर में पढ़ने गया है । घर वाले समझते हैं कि वह पढ़ रहा है। वह घर से ५०-६०-१00 रुपये प्रति-मास मँगा लेता है। मगर वह पढ़ता नहीं है और मटरगश्ती में रहता है, सिनेमा देख आता है, दोस्तों के साथ होटलों में सैर कर आता है ! परीक्षा पास में आ गई है, पुस्तकों का ढेर है, फिर भी पढ़ने में जी नहीं लगाता ! ऐसे विद्यार्थी को भी चोर कहा जाता है, साहूकार नहीं कहा जा सकता।
विद्यार्थी को पढ़ने का काम मिला है, अपने आपको ऊँचा बनाना उसका कर्तव्य है। वह स्वयं प्रकाश प्राप्त करले तो अंधकार में भटकने वाले दूसरों को भी रोशनी दे सके। उसके सामने यह आदर्श है कि मैं अच्छा नागरिक बनूँगा और दूसरों को भी अच्छा नागरिक बनाऊँगा। मैं जो प्रकाश प्राप्त कर रहा हूँ, वही प्रकाश अपने समाज
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