Book Title: Asteya Darshan
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 138
________________ अस्तेय दर्शन / १२३ ओर हमारा यह संकीर्ण मनोभाव ठीक नहीं है। क्या दोनों विचारों में अंशमात्र भी सामंजस्य है ? अगर हम सांस्कृतिक सौजन्य के आधार पर तथा त्याग और सहयोग के आधार पर जीवन को सुव्यवस्थित करें तो दोनों प्रकार के विचारों को हम गहराई से समझ सकेंगे और उसमें से जो उपादेय है, वह ग्रहण कर लेंगे। नर्क और स्वर्ग की बातें करने वाले ही बगल में बैठे इन्सान को अपनाने में हिचक कर जाते हैं । उसको तो सामाजिकता के नाते गले लगाना चाहिए। यदि उस मनुष्य को देखकर आपके हृदय में सात्विक स्नेह की जागृति नहीं होती तो ऐसा मानना चाहिए कि अहिंसा और धर्म के प्रति आपका सच्चा अनुराग जागृत नहीं हो रहा है। उदार और व्यापक दृष्टिकोण के लिए हरिकेशबल और मेतार्य मुनि की कथाओं के रूप में जैन संघ का अतीत बहुत गौरवपूर्ण रहा है और जातिवाद का विरोधी रहा है। हमें अहिंसा के व्यापक स्वरूप की ओर अब ध्यान देना चाहिए और मानुषिक कालुष्य से ऊपर उठकर जीवन के सम्बन्धों को स्थिर करना चाहिए। हरिजन सम्मेलन आगरा ७ मार्च, १९८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152