Book Title: Asteya Darshan
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 145
________________ १३०/ अस्तेय दर्शन भारत की पुरातन परम्परा : भारत में पुरानी परम्परा रही है कि मरने से पहले पूछा जाता था कि कोई इच्छा बाकी तो नहीं रही है ? मतलब इसका यह था, कि मरते समय वह किसी प्रकार का मानसिक द्वन्द्व लेकर नहीं मरे, वह परलोक की यात्रा पर जाने वाला यात्री जलता हुआ न जाए, बल्कि मन को शांत व समाधिस्थ करके जाए । हमारे यहाँ संथारा किया जाता है। संथारा का अभिप्राय क्या है मनुष्य सब इच्छाओं, सब द्वन्द्वों और लालसाओं से मुक्त होकर समाधिपूर्वक देह त्याग करे । संसार की भौतिक वासनाओं में उसकी कोई इच्छा अटकी न रहे । संथारा करने से पहले आचार्य पूछा करते थे, कि "तुम्हारी कोई इच्छा तो बाकी नहीं है? कोई द्वन्द्व तो मन में शेष नहीं है ?" यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मनुष्य का मन बुढ़ापे में खूब प्रसन्न रहे, मरते समय उसकी भावनाओं में किसी प्रकार की आसक्ति, संघर्ष एवं लालसा न हो। मगर हम देखते हैं, कि कूणिक ने श्रेणिक को शांति से नहीं मरने दिया। उसको पिंजरे में एक पशु की तरह बंद कर दिया और स्वयं मगध के राज सिंहासन पर बैठ गया। पिता के वात्सल्य और माता की ममता से भी अधिक उसने सिंहासन को प्रतिष्ठा दी। साम्राज्य को महत्त्व दिया। बस, सिंहासन पर आते ही वह साम्राज्य-लिप्सा में बेताव हो उठा, तो आँधी और तूफान की तरह संसार पर छा गया। श्रावस्ती पर आक्रमण करके वहाँ का विराट् वैभव ध्वस्त किया और फिर वैशाली के गणराज्य पर टूट पड़ा। अपने नाना चेटक के साथ युद्ध किया और वैशाली के स्वर्गीय वैभव को धूलिसात् करने की चेष्टा की। जिस वैशाली के वैभव के बारे में बुद्ध ने कहा था कि "स्वर्ग के देवताओं को जो देखना चाहे, वह वैशाली के नागरिकों को देख ले।" इतना महान वैभव, एक राजा की क्रूर राज्य लिप्सा के सामने मिट्टी में मिल गया । कूणिक ने साम्राज्य का विस्तार करके सोचा होगा कि युग-युग तक संसार में मेरी कीर्ति गाथा अमर रहेगी। इतिहास उसके अद्वितीय शौर्य पर स्वर्ण-रेखाएँ खींचता रहेगा, पर कहाँ रहा उसका वैभव ? उसने जो विशाल प्रासाद खड़े किए, किले बनाए, आज उनकी क्या दशा हो रही है? बहुतों का तो पता नहीं है, कहाँ भूमिसात् हो गए, और जो ध्वंसावशेष के रूप में बचे-खुचे खण्डहर हैं, उनमें आज दुनियाँ शौच के लिए जाती है। हमने राजगृह के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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