Book Title: Asteya Darshan
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 139
________________ राष्ट्र चेतना का मूल : त्याग में है, भोग में नहीं मनुष्य के महत्त्व और प्रतिष्ठा का मूल आधार क्या है ? प्राचीन शास्त्रों और ग्रन्थों में उसकी प्रतिष्ठा का जो आधार बताया है, वह क्या है, और वर्तमान में वह किस आधार पर चल रहा है ? इस पर विचार और चिन्तन करना है। मनुष्य की प्रतिष्ठा का मूल आधार उसका अपना मनुष्यत्व, मानवता ही माना गया है। चरित्र, त्याग, सेवा और प्रेम -- इसी आधार पर मानव की महत्ता तथा प्रतिष्ठा का महल खड़ा किया गया था। पर आज लगता है-मनुष्य स्वयं इन आधारों पर विश्वास नहीं कर रहा है। अपनी प्रतिष्ठा को चार चाँद लगाने के लिए उसकी नजर भौतिक साधनों पर जा रही है, वह धन, सत्ता और नाम के आधार पर अपनी प्रतिष्ठा का नया प्रासाद खड़ा करना चाह रहा है। आज महत्ता के लिए एकमात्र भौतिक विभूति को ही आधार मान लिया गया है। एक कहानी चलती है कि एक गाँव में कोई यात्री आ रहा था, रास्ते में उसे कोई आदमी मिल गया। यात्री ने उससे पूछा-"भाई, इस गाँव में मुखिया कौन है, चौधरी का नाम क्या है?" उसने पूछा-"तुम्हें क्या मतलब है ?" कहा उसने कि "बाहर से आया हूँ, इसलिए गाँव के चौधरी का नाम तो जान लेना चाहिए न?" उसने उत्तर दिया-"पिछली साल मुखिया मेरा भाई था, इस साल मैं हूँ ।" यात्री ने जरा आश्चर्य से पूछा-"ऐसा क्यों ? एक साल में ही बदल.कैसे गए.?" गाँव वाले ने बताया-"पिछली साल उसके यहाँ दो मन अनाज ज्यादा हुआ था, इसलिए मुखिया वह बन गया था और इस साल मेरे यहाँ दो मन अनाज ज्यादा हुआ. तो मैं मुखिया बन गया ।" इस बात में विनोद का पुट जरूर है, किन्तु आज के समाज की वास्तविकता यही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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