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मानव और पशु : एक भेदरेखा
हमारे समक्ष दो आकृतियाँ हैं, दो गतियाँ हैं, याने दो योनियाँ हैं-एक मनुष्य की और दूसरी पशु की । यों तो नरक और स्वर्ग के सम्बन्ध में भी हमारे पास ज्ञान है, किन्तु उसका ज्ञान विशिष्ट ज्ञानियों को भले ही साक्षात् प्रत्यक्ष के रूप में हो, हमारे लिए तो वह शास्त्राधीन होने से परोक्ष ही है। वर्तमान नीति-शास्त्र की दृष्टि से विचार करें, तो नरक और स्वर्ग प्रधानतः भोग-योनि मानी गई है, जबकि मनुष्य और पशु की योनि कर्म-योनि । इस दृष्टि से भी हमारे लिए नरक और स्वर्ग की चर्चा की अपेक्षा मनुष्य और पशु की चर्चा अधिक महत्त्व की होगी। ___ मनुष्य और पशु-दोनों भाई-भाई की भाँति एक दूसरे के सामने हैं । विश्व के ये दो प्राणी इसी आकाश के नीचे और इसी धरती पर अपने-अपने जीवन-प्रवाह को साथ लिए एक-दूसरे के साथ-साथ कभी सहयोगी बनकर और कभी विरोधी बनकर, कभी रागी और कभी द्वेषी बनकर चलते आ रहे हैं । भेद का आधार : ___ यह सत्य है, कि दोनों के जीवन धारण का धरातल समान है, किन्तु उतना ही सत्य यह है, कि दोनों के जीवन धारण का धरातल भिन्न है। जब हमारे दार्शनिक चिंतक यह पता लगाने बैठे, कि इन दोनों में क्या अन्तर है ? इस तर्क ने उनके दिमाग को शान्त नहीं रहने दिया कि मनुष्य मनुष्य क्यों है? और पशु पशु क्यों है ?' आखिर एक ही भूमण्डल पर साथ विचरने वाले इन प्राणियों में भेद-रेखा खींचने का वास्तविक आधार क्या है ? इनमें मौलिक अन्तर क्या है ?
बुद्धि के पंख जब हिलने लगे, तब आँखें चुप नहीं रह सकी, बाहर की आँखों ने हलचल की तो उन्होंने आकृति को पकड़ा। आकृति को पकड़ा तो उन्हें मनुष्य और पशु के आकार-प्रकार, रंग-ढंग आदि में अन्तर दिखाई दिया। लेकिन जब अन्तर की आँखों से निहारा तब उनके सामने शारीरिक आकार-प्रकार के अन्तर का कोई महत्त्व नहीं रहा। दोनों के पास एक ही औदारिक शरीर है, मांस, अस्थि, मज्जा से निर्मित
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