Book Title: Asteya Darshan
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 118
________________ अस्तेय दर्शन / १०३ समक्ष स्कूटर का मूल्य गिर गया। अपनी नजर में अपना मूल्य गिराने की यह वृत्ति बहुत खतरनाक है। मैं सोचता हूँ, मूल्यांकन की यह दृष्टि बदलनी होगी। हमें अपने व्यक्तित्व का भान करना होगा, और अपना मूल्य समझना होगा। क्या आपका अपना मूल्य कुछ नहीं है ? भौतिक वस्तुओं के भावाभाव से ही आपका मूल्य घटता-बढ़ता है ? आप अपने महान मूल्य को क्यों गिराते हैं ? अपने व्यक्तित्व को गिराने से व्यक्ति गिर जाता है, समाज गिर जाता है और राष्ट्र गिर जाता है। प्राचीन भारत में मूल्यांकन की पद्धति कुछ और थी। व्यक्तित्व के पैमाने कुछ बड़े और अच्छे थे। वहाँ भौतिक विकास का मूल्य नहीं होता, किन्तु चरित्र का मूल्य होता था। बड़ी-बड़ी सत्ताएँ चरित्र के सामने नत मस्तक होती थीं । सम्राट और सेनापति त्यागी ऋषियों के चरणों में झुके रहते थे। - जैसा कि मैंने कुछ सुना है-स्वामी विवेकानन्द जब अमेरिका गए, तो उनके शरीर पर तो वही एक साधारण-सी चादर कंधे पर, और एक लूँगी, बस जो यहाँ, वही वहाँ। धन कुबेर अमेरिका के कुछ लोगों ने कहा-(जो अपने को नयी सभ्यता और संस्कृति के दावेदार समझते थे) आपकी यह कैसी संस्कृति है ? कैसी सभ्यता है ? स्वामी जी जरा मुस्कराए और बोले-जी हाँ, आपकी संस्कृति में और मेरी संस्कृति में अन्तर है। आपके यहाँ संस्कृति का निर्माण दर्जी करते हैं और मेरे देश में चरित्र करता है। मेरे विचार में यही एक विकल्प है, जो हमारे दृष्टिकोण को नया मोड़ दे सकता है, हमारी मूल्यांकन पद्धति को बदल सकता है और हमें अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व की गौरवानुभूति करा सकता है। आजकल कुछ हीन स्तर की बातों का बहुत अधिक विज्ञापन हो रहा है। 'भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, रिश्वत, बेईमानी, डाका, हत्याएँ और अराजकता फैल रही है, देश रसातल की ओर जा रहा है आदि। हमारे अक्षय जी जैसे पत्रकारों ने भी इन बातों को बहुत महत्त्व दे दिया है और जनता ने भी । प्रतिदिन अखबारों में ऐसी ही अभद्र, घटनाएँ खास सुर्खियों में स्थान पाती हैं, जनता की मनोवृत्ति भी विचित्र है, जब कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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