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१०८ / अस्तेय दर्शन
गुरु शिष्य को आश्वस्त किया- "तुम सचमुच ही जिज्ञासु हो। तुम्हारी यह जीवन्त जिज्ञासा तुम्हें अवश्य सत्य के दर्शन कराएगी। तू न शरीर है, न इन्द्रिय है, न मन है। तू तो अखण्ड ज्ञान ज्योतिर्मय आत्मा है, चेतन है ।"
भगवान् इन्द्र भूति गौतम भी इसी प्रश्न को लेकर भगवान् महावीर के समक्ष आए कि मैं कौन हूँ? जम्बू स्वामी भी उन स्वर्ग से होड़ लगाने वाले भौतिक ऐश्वर्यों को ठुकराकर इसी प्रश्न का समाधान पाने के लिए साधना के पथ पर चले थे ।
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हाँ, तो जब तक मनुष्य आत्म-स्वरूप को नहीं पहचानता, मैं कौन हूँ, इस प्रश्न का पता नहीं लगाता, तब तक उसमें और पशु में क्या अन्तर है ? क्या भेद है ? शक्लों सूरत का भेद कोई महत्त्व नहीं रखता है। कवि ने कहा है
"आहार-निद्रा भय-मैथुनं च समान मेतद् पशुभिर्नराणाम् । धर्मों हितेषामधिको विशेषो धर्मेण हीना पशुभिः समाना : ॥"
भोजन, नींद, भय और वासना तक तो मनुष्य और पशु दोनों एक ही रेखा पर खड़े हैं। भोजन की खोज में छोटे-से-छोटे जीव से लेकर जलचर, थलचर, नभचर आदि सभी को दौड़ना पड़ता है। जब पेट सबके पास है, तब भूख भी सबको लगेगी और उसकी परितृप्ति के लिए प्रयत्न भी करना पड़ेगा। निद्रा की दृष्टि से भी दोनों में कोई अन्तर नहीं है। मनुष्य सोते हैं, पशु ऊँघते हैं। चाहे धनिक हो या गरीब हो, चाहे कोई मखमल के गलीचे पर सोए, अथवा कँकरीली ऊबड़-खाबड़ जमीन पर, किन्तु
दोनों को ही लेनी पड़ती है। यदि नींद नहीं आएगी, तो सम्भव है दिमाग खराब हो जाए। नींद की भाँति भय की भावना से ही मनुष्य को इतने भयानक शस्त्रों के निर्माण की ओर ढकेला है। भय की भावना ने ही आज मनुष्य को मनुष्य का शत्रु बना रखा है। आज जो राष्ट्रों के बीच शीत युद्ध याने ठंडी लड़ाई चल रही है, उसके मूल में.. भय की भावना ही तो है। हाँ, यह बात जरूर है, कि पशु-पक्षियों में जहाँ भय की भावना, आत्मरक्षा तक ही सीमित है, वहाँ मनुष्य में यह क्रूरता के रूप में भी प्रकट हुई है।
वासना की दृष्टि से मनुष्य पशु से अधिक सभ्य नहीं है। दोनों ही उससे पीड़ित हैं। इसके चक्कर में आकर मनुष्य अपना विवेक तो भूलता ही है, किन्तु बड़े भयानक काण्ड भी कर देता है। फ्रायड के मनोविज्ञान के अनुसार काम ग्रन्थि प्रत्येक प्राणी में
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