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१०२/ अस्तेय दर्शन
रामराज्य के आधार स्तम्भ :
आपके मन में प्रश्न पैदा हो सकता है, कि क्या स्वराज और रामराज्य की कल्पना फिर मात्र मिट्टी का खिलौना बनकर रह जाएगी? केवल स्वप्नों और काव्यों की वस्तु ही बनी रहेगी?
दर असल बात ऐसी नहीं है। गाँधीजी ने रामराज्य की जो कल्पना दी थी वह कोई आकाश से टपक कर नहीं आई थी। गाँधी जी भारतीय चिन्तन एवं संस्कृति की उपज थे, इसलिए उनकी रामराज्य की कल्पना भी भारतीय चिंतन एवं संस्कृति की ही देन है। भारतीय संस्कृति में रामराज्य की कल्पना को चरितार्थ करने वाले दो प्रमुख तत्व रहे हैं-संयम और करूणा ।
संयम का अर्थ बहुत व्यापक है, वह कुछ नियत काल की साधना मात्र नहीं है, वह तो जीवन का अभिन्न अंग है। जब तक हम अपने आपको संयमित और अनुशासित नहीं कर लेते, तब तक समाज में सुख और शांति के साथ जी नहीं सकते। संयम इच्छाओं को सीमित करता है, आकांक्षाओं के आगे एक रेखा खींच देता है, जो हमारे व्यक्तित्व को खण्डित होने से बचाती है। और, करुणा मानव को अपनी उपलब्धियों को दूसरे जरूरत मंदों के लिए उत्सर्ग करने की बिना किसी दबाव के सहज भाव से प्रेरित करती है। व्यक्तित्व का अवमूल्यन तभी रुकेगा, जब हम अपने आपको संयमित, स्वस्थ एवं करुणाई कर पाएंगे। अपना सही मूल्यांकन करिए :
मैं देखता हूँ, वर्तमान का जन-जीवन एक सबसे खतरनाक मानसिक बीमारी से आक्रांत हो रहा है, वह है अपना मूल्य गिराने की बीमारी । कल्पना कीजिए-आप पैदल चल रहे हैं, सामने से कोई साईकिल वाला आ गया और सर्सर् करता आपके बगल से निकल गया तो आपके मन में एक हीन-संकल्प उठ गया कि-"इसके पास साईकिल है, हम पैदल हैं । आपने अपना मूल्य कम समझ लिया और साईकिल को महत्त्व दे दिया। साईकिल वाले का मूल्य बढ़ा दिया। स्कूटर वाले को देखा तो साईकिल वाले ने अपना मूल्य कम कर दिया और स्कूटर वाले को अपने से बड़ा समझने लगा। कार वाला कोई सामने आ गया तो बस, आप अपनी नजर में ही अपने को तुच्छ और हीन समझने लग गए। कार वाले को बहुत महत्त्व दे दिया। कार के
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