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८८ / अस्तेय दर्शन
ने जब हिंसात्मक यज्ञों का स्पष्ट शब्दों में विरोध किया तो ब्राह्मणों ने कितने तिरस्कारपूर्ण शब्दों की भेंट चढ़ाई होगी? भगवान महावीर ने जाति-पाँति के बंधनों के विरुद्ध भी सिंहनाद किया। लोग इस नयी बात को सुनकर चिल्ला उठे, पर उन्होंने कोई परवाह नहीं की और कहा
“मनुष्य जातिरेकैव जातिकर्मोदयोद्भवा" महिला समाज के उत्थान का प्रश्न आया, तो वहाँ भी उन पर समाज को भंग करने का दोषारोपण किया गया। किन्तु विरोध की तनिक भी परवाह न करते हुए उस क्रान्तिकारी ने नारी जाति को भी पुरुष वर्ग की भाँति ही समान अधिकार प्राप्त कराए।
समाज-सुधारक का मार्ग फूलों का नहीं, काँटों का मार्ग है, उसे कदम-कदम पर निन्दा का जहर पीकर शान्त भाव से चलना पड़ता है। समाज सुधारक को आज का समाज गालियाँ देगा, किन्तु भविष्य का समाज युग-निर्माता' के रूप में युग-युग तक उसे स्मरण करता रहेगा। आज का समाज उसके पथ पर काँटे बिखेरेगा, किन्तु भविष्य का समाज उसे श्रद्धांजलियाँ समर्पित करेगा। नयी जागृति और साहस की भावना को लेकर वह अपने पथ पर अग्रसर होता रहे, भविष्य उसका है।
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