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६४ / अस्तेय दर्शन
टरकाकर मिठाई खा रहा है और उनमें से कोई एक बालक अचानक फिर वहाँ पहुँच जाय और उसे मिठाई खाते देख ले तो क्या उस बालक के दिल में, उस आदमी के प्रति, जिंदगी भर के लिए अविश्वास की गहरी जड़ नहीं जम जायेगी ? उसके प्रति बालक के सहज विश्वास को चोट नहीं पहुँचेगी? बालक के हृदय में उसके प्रति जो प्रेम और आदर की भावना है, वह अक्षुण्ण बनी रहेगी ? क्या बालक सब के प्रति अविश्वासशील नहीं बन जायगा ? और फिर जब वह बालक बड़ा होगा तो क्या अपने
छोटों को इसी प्रकार का चकमा नहीं देगा ? वह झूठ बोलने और छल-कपट करने की शिक्षा नहीं ग्रहण करेगा? उसे स्वार्थ परायणता का पाठ सीखने को नहीं मिलेगा ।
यों चुपके-चुपके मिठाई खा लेना एक साधारण-सी बात मालूम होती है, मगर उसके कार्य-कारण भाव की परम्परा पर विचार किया जाय तो वह बहुत गंभीर बुराई प्रतीत होगी। यह छोटी-छोटी जान पड़ने वाली चोरियाँ आज समाज को जला रही हैं। एक डाकू थोड़ी देर तक आतंक पैदा करके कहीं विलीन हो जाता है, मगर यह चोरियाँ उससे भी अधिक भयंकर कार्य कर रही हैं और समाज को गहरे गर्त में गिरा रही हैं । भोजन संविभाग धर्म :
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भोजन के विषय में, शास्त्र में, साधुओं के लिए, एक बड़ी सुन्दर बात बतलाई है। सहभोगी साधु साथ-साथ भोजन करने के लिए बैठे हैं। लाया हुआ भोजन बाँटा जा रहा है। बाँटने वाले के लिए यह आदेश है कि वह पहले अपने लिए भोजन न रख ले, किन्तु दूसरों को देने के बाद जो बचे, वह अपने लिए रक्खे। इसी प्रकार यह नहीं कि दूसरों को साधारण चीजें बाँट दे और अपने लिए अच्छी चीज रख ले। अगर बाँटने वाला इस नियम का पालन नहीं करता और अपने लिए अच्छी-अच्छी चीजें बचा कर रख लेता है, तो वह चोर है !
और जो साधु एक ही पात्र में भोजन करने वाले हैं, उन्हें चाहिए कि वे हमेशा की गति से ही भोजन करें। अच्छी चीज देख कर जल्दी-जल्दी हाथ मारना भी चोरी है।
उपर्युक्त बातें कितनी साधारण हैं, मगर उनका प्रभाव जीवन में कितनी दूर तक पहुँचता है - इसीलिए जीवन को पवित्र और उच्च बनाने के लिए इन साधारण- -सी बातों को ध्यान में रखना परम आवश्यक है- क्योंकि इनका साम्राज्य बहुत विशाल है हमारे जीवन में, वास्तव में जौहरी की तराजू चाहिए। माली की तराजू वहाँ काम
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