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७६ / अस्तेय दर्शन
इसी प्रकार बड़े-बड़े अधिकारी या छोटे-छोटे कर्मचारी, किसी गद्दी पर बैठकर काम करते हैं और उस काम के लिए वेतन पा रहे हैं, किन्तु अपने कर्तव्य को, ईमानदारी के साथ, पूरा नहीं करते । जितना परिश्रम करना चाहिए, उतना करने से जी चुराते हैं और अपने उत्तरदायित्व का पूरी तरह से पालन नहीं करते और इधर-उधर की गप्पों में समय नष्ट कर देते हैं, तो सिद्धान्त की दृष्टि से यह भी चोरी है। चोरी का सम्बन्ध सिर्फ दूकानदारी के साथ नहीं है। मनुष्य किसी भी क्षेत्र में कोई भी काम क्यों न करता हो; यदि उसे प्रामाणिकता के साथ नहीं करता है तो वह स्पष्टतः चोरी करता है।
आज सब ओर रिश्वत का बाजार गर्म है। जहाँ देखो वहीं छीना झपटी हो रही है। किसी को दूर का टिकट लेना है तो रिश्वत चाहिए। मालगाड़ी से माल भेजना है तो
घूस चाहिए । मकान बनवाना है, किन्तु आज्ञा नहीं मिल रही है, रिश्वत चाहिए। मारपीट हुई है और थाने में रिपोर्ट लिखवानी है, मगर रिश्वत दिए बिना ठीक तरह रिपोर्ट नहीं लिखी जायगी। चूंस और अस्तेय :
इस प्रकार सब जगह घूस का बोलबाला है। उसकी व्यापकता ने भारत के नैतिक बल को क्षीण कर दिया है और मनुष्यता का हास होता चला जा रहा है।
अभी-अभी प्रश्न चल रहा था कि व्यापारी कहते हैं-सरकार हमारा साथ नहीं देती और सरकार कहती है-व्यापारी हमारा साथ नहीं देते । व्यापारी जब रिश्वत देकर आता हैं तो सोचता है मुझ पर यह व्यर्थ का वजन पड़ गया है, तो अब उसे हल्का करना ही होगा। जो थैली खाली हो गई है, उसे फिर भरनी होगी और ऐसी धारणा मन में धारण कर वह काला बाजार करता है। और काला बाजार चोरी है तो वह रिश्वत भी क्या चोरी नहीं है ? छोटे और बड़े अधिकारी, कमती या ज्यादा, जो भी रिश्वत ले रहे हैं वह भी चोरी है और यह श्रावक के लिए त्याज्य है। ___ महेन्द्रगढ़ के लाला ज्वाला प्रसाद जी को आपमें से बहुत लोग जामते होंगे। उनकी मोटरें जब कभी इधर-उधर जातीं तो उन्हें कोई रोकता नहीं था, फिर भी वे चुंगी-चौकी पर खड़ी हो जाती थीं । जब खड़ी हो जाती तो ड्राइवरे से पूछा जाता-क्या है ? ड्राइवर कहता-पूछने की क्या बात है, ,आप स्वयं आकर देख
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