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अस्तेय दर्शन/८३
रहे हैं । मैं इस अवसर पर चेतावनी देता चाहता हूँ कि यह वृत्ति राष्ट्र के लिए कल्याणकारी नहीं है। यह वृत्ति तो हमारे भविष्य का बहुत ही गलत ढंग पर निर्माण कर रही है। इसकी बदौलत देश तबाह हो सकता है और यदि समय रहते सुधार न कर लिया गया तो निश्चय ही निकट भविष्य में एक भीषण उथलपुथल मचने वाली है, जिसमें हमारी सारी व्यवस्थाएँ और परम्पराएँ धराशायी हो जाएँगी। राष्ट्र और समाज के कर्णधारों को अविलम्ब इस अचौर्यवृत्ति का उन्मूलन करना होगा, तभी राष्ट्र और समाज का मंगल सम्भव है।
व्यावर, अजेमर
३-११-५०
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