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अस्तेय दर्शन /६७
ज्ञान देना होगा। जो समाज-सेवक हैं, उन्हें अवसर आने पर समाज की सेवा करनी ही चाहिए। ____ जीवन-क्षेत्र में अनेक शक्तियाँ हैं, एक ही शक्ति नहीं है। अतएव कोई यह न समझे कि मैं पढ़ा लिखा नहीं हूँ, धनवान् भी नहीं हूँ, तो क्या करूँ ? मैं कर ही क्या सकता हूँ? मेरी शक्ति ही क्या है ? बहुत बार ऐसी ही भावनाएँ व्यक्त की जाती हैं।
और बहुत लोग अपने को दीन, हीन और असमर्थ मान कर निराश हो जाते हैं । सेवा की भावना रखते हुए भी सेवा नहीं करते। मगर ऐसा सोचना योग्य नहीं है। कौन ऐसा मनुष्य है इस संसार में जिसे समस्त शक्तियाँ प्राप्त हों ? प्रायः धनवान्, ज्ञानवान् नहीं होते और ज्ञानवान्, धनवान् नहीं होते। सभी धनवान् और ज्ञानवान् शारीरिक शक्ति से सम्पन्न नहीं होते। किन्तु कौन ऐसा मनुष्य है इस संसार में, जिसे एक भी शक्ति प्राप्त न हो ? प्रत्येक मनुष्य में कोई न कोई शक्ति तो होती ही है। शक्ति के अभाव में तो जीवन कायम ही नहीं रह सकता। अतएव जो जीवित है, उसमें कोई न कोई शक्ति भी अवश्य है। और ऐसी स्थिति में निराशा की क्या बात है ? तुम्हारे पास धन की शक्ति नहीं है तो न सही, विद्या की शक्ति नहीं है तो कोई चिन्ता नहीं, शरीर तो तुम्हारा शक्तिमान् है ? तुम्हें अगर शक्तिशाली शरीर नसीब हुआ है तो यह भी तुम्हारी एक बड़ी भारी शक्ति है। इस शक्ति के द्वारा तुम समाज की सेवा कर सकते हो-समाज के काम आ सकते हो। फिर चिन्ता क्यों करते हो? ___कदाचित् तुम्हें सशक्त शरीर भी नहीं मिला है, तो भी निराश मत होओ। शरीर से भी बड़ी विराट और व्यापक शक्ति तुम्हें मन के रूप में मिली है। मन से तुम दूसरों के कल्याण की कामना कर सकते हो। इसी प्रकार वचन के द्वारा भी समाजसेवा के अनेक कार्य किए जा सकते हैं। अपने पवित्र व्यवहार और शुद्ध आचरण के द्वारा भी समाज के समक्ष स्पृहणीय आदर्श उपस्थित करके सेवा कर सकते हो।
अभिप्राय यह है कि अगर आप सेवा न करने का कोई बहाना ही खोजते हैं, तब तो आप चोरी कर रहे हैं. और यदि आपके अन्तःकरण में सचमुच ही सेवाभाव का उदय हुआ है, तो आपके पास जो भी शक्ति है, उसी का सदुपयोग करो। अपनी शक्तियों का अपलाप न करो, बल्कि समस्त शक्तियों को, जो तुम्हें प्राप्त हैं, दूसरों के लिए प्रयुक्त करो।
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