________________
अस्तेय दर्शन / ७३
मिलावट करके व्यापार करना या अच्छी चीज की बानगी दिखाकर बुरी चीज दे देना, यह सब अस्तेय व्रत के अतिचार हैं; एक प्रकार की चोरी है ।
अस्तेय व्रत और अतिचार :
यहाँ एक बात ध्यान में रखनी है। प्रत्येक व्रत के हमारे यहाँ पाँच-पाँच अतिचार बतलाये गये हैं, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि अतिचार पाँच ही होते हैं और पाँच से ज्यादा नहीं हो सकते । पाँच की संख्या तो मात्र उपलक्षण है।
उपलक्षण तो आप समझते हैं? एक आदमी कटोरे में दूध रखकर किसी काम से अन्यत्र जा रहा है। वह वहीं के बैठे हुए दूसरे साथी को कह जाता है - देखना भाई, मैं अभी आता हूँ; बिल्ली आकर दूध न पी जाए। इतना कह कर वह आदमी चला जाता है। उसके चले जाने के बाद बिल्ली तो नहीं, पर कुत्ता आता है और दूध की ओर लपकता है। अब आप सोचें कि दूध के पास बैठा हुआ मनुष्य उस कुत्ते को रोकेगा या नहीं ? स्मरण रखना है कि दूध वाले ने, जाते समय, बिल्ली का नाम लेकर दूध की रखवाली रखने की बात कही थी। उसने कुत्ते से बचाने को नहीं कहा था । तब वह मनुष्य दूध की रक्षा के लिए कुत्ते को भगाये या नहीं ? प्रश्न दूध का है और इसलिए कठिन नहीं है। आप समझ जाएँगे और कहेंगे कि कहने वाले ने भले 'बिल्ली' कहा हो, पर उसका आशय तो कुत्ते से भी बचाने का है। दूध को क्षति पहुँचाने वाले, बिगाड़ने वाले जितने भी जीव-जन्तु हैं, उन सब का समावेश 'बिल्ली' में हो गया है ।
तो बस, इसी को कहते हैं 'उपलक्षण | बात भले ही एक कही गई हो, परन्तु जहाँ उसके समान और-और बातों का भी ग्रहण होता है, वह उपलक्षण कहलाता है ।
व्रतों के पाँच-पाँच अतिचार भी उपलक्षण हैं। उनमें से प्रत्येक अतिचार में अनेक तत् सदृश बातों का समावेश होता है। अतएव जो व्यवहार साक्षात् अदत्तादान-रूप न हो और जिस का उल्लेख उसके पाँच अतिचारों में न हो, वह भी अगर अस्तेय व्रत की 'भावना के प्रतिकूल है, उसमें अप्रामाणिकता और बेईमानी है, तो वह अदत्तादान में ही गिना जायगा ।
उदाहरण के लिए 'ब्लैक मार्केट' को ही ले लीजिए। ब्लैक मार्केट इस युग की देन है। प्राचीन युग में वह नहीं होता था । अतएव अदत्तादान के अतिचारों में उसका साक्षात् उल्लेख नहीं है, फिर भी है तो वह चोरी ही । जैनशास्त्रों से अनभिज्ञ लोग भी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org