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अस्तेय दर्शन/२५
अगर व्यापारियों ने होश न सम्भाला तो भूखी-जनता की आँखें उनकी तिजोरियों को घूर रही हैं। अब ये तिजोरियाँ सुरक्षित नहीं रह सकेंगी। व्यापारी यदि उनकी रक्षा करना चाहते हैं, तो एक ही उपाय है और वह यह कि उन्हें और अधिक भरने की कोशिश न की जाय, साथ ही उनका बोझ कम करके उन्हें जरा हल्का कर दिया जाय । ऐसा न किया गया तो भीषण क्रान्ति और बड़ा भारी इन्किलाब आएगा। उसे कोई नहीं रोक सकेगा।
तात्पर्य यह है कि जीवन में, व्यापार-कला के नाम से आज जो चोरी चल रही है, उसे त्याग देना ही मंगलकर है। स्तेय के बिना नीतिपूर्वक एक पैसा भी आयगा तो वह रुपये के बराबर होगा। और यदि हजारों, लाखों और करोड़ों आ गये, किन्तु गरीबों के आँसुओं से भीगे हुए आये, तो वे बर्वाद कर देंगे।
युग के विधान को समझ लेने में ही बुद्धिमत्ता है। आज अखिल विश्व एक नये रूप में बदलता जा रहा है और जनता नवीन दृष्टिकोण से तथ्यों को समझने और अवलोकन करने लगी है। वह दृष्टिकोण अब तक के दृष्टिकोण से बहुत अंशों में निराला है। अब कोई भी शक्ति प्राचीन आर्थिक प्रणालिका को कायम रखने में समर्थ नहीं है। ऐसी स्थिति में जो न सँभलेंगे वे स्वयं डूबेंगे और अपने सजातियों को भी डुबोयेंगे।
व्यापारिक स्तेय उस स्थिति को सन्निकट से सन्निकटतर ला रहा है। व्यापारी ब्लैक मार्केट करके अपने ही पैरों पर कुठार चला रहे हैं । वे समझते हैं, हम चतुर हैं, मगर चतुर लोग समझते हैं कि अपने अस्तित्व की जड़ उखाड़ने में लगे हुए लोगों की मूर्खता सीमातीत है।
मैं देख रहा हूँ, यह अन्तिम अवसर है। जिन्हें सावधान होना हो, हो लें, अन्यथा काल-चक्र में पिसना ही है।
व्यावर, अजमेर २१.१०.५० ।
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