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अस्तेय दर्शन / २९
कह देते हैं-दो घड़ी की। अर्थात् दो घड़ी से पहले नहीं और दो घड़ी के बाद भी नहीं, किन्तु सिर्फ दो घड़ी तक ही गृहस्थ सामायिक में है।
यह अविचार समाज के जीवन में प्रवेश कर गया है। और इस रूप में जनता ने समझा है कि हमारी सामायिक तो इत्तरिया, इत्वरिक थोड़े काल के लिए है, और साधु की सामायिक यावज्जीवन के लिए होती है, थोड़ी देर के लिए नहीं ।
किन्तु जैन धर्म के मर्म को और उसकी गहराई को जब देखते हैं तो मालूम होता है कि गृहस्थ की सामायिक भी यावज्जीवन के लिए होती है, थोड़ी देर के लिए नहीं होती। श्रावक के द्वादश व्रतः
औपपातिकसूत्र में वर्णन आता है कि यह अणुव्रत रूप से पालन किये जाने वाले अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह व्रत, नियम और प्रत्याख्यान आदि गृहस्थधर्म के अंग गृहस्थ की सामायिक है। और यह सामायिक गृहस्थ के जीवन को अधिकाधिक विकास तथा विस्तार में ले जाती है। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि गृहस्थ के व्रत अगर गृहस्थ की सामायिक है तो क्या व्रत दो घड़ी के लिए होते हैं ? अगर ऐसा नहीं है और वे यावज्जीवन के लिए हैं तो गृहस्थ की सामायिक भी यावज्जीवन के लिए क्यों नहीं है ?
मुझे और भी जगह चर्चा करने का काम पड़ा है और यहाँ भी प्रसंग आ गया है। हमारे सामने एक प्रश्न है। वह यह कि गृहस्थ का धर्म किस चारित्र के अन्तर्गत है?
चारित्र पाँच प्रकार के हैं'सामायिक-छेदोपस्थाप्य-परिहारविशुद्धि-सूक्ष्मसम्पराय-यथाख्यातानि चारित्रम ।'
___ - तत्त्वार्थसूत्र। (१) सामायिक (२) छेदोपस्थान (३) परिहारविशुद्धि (४)सूक्ष्मसम्पराय और (५) यथाख्यात-यह पाँच चारित्र हैं।
गृहस्थ के द्वादश व्रत, ग्यारह प्रतिमाएँ आदि जो चारित्र हैं, उसे इन पाँच में से किसमें सम्मिलित करें ? यह प्रश्न सामने आने का विचार करने वाले साथी लड़खड़ाते रहे और कहने लगे-गृहस्थ के चारित्र ही कहाँ हैं ? उसके तो
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