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१४/ अस्तेय दर्शन
जगह पहुँचाया जाता है और वह फिर उस जगह के किसी विशेष उत्पादन को लेकर अपने स्थान को लौटता है।
इस प्रकार जब आयात-निर्यात का काम जारी हुआ तो उसके नफा-नुकसान का हिसाब-किताब रखना जरूरी हो गया और कलम पकड़ना भी जरूरी हो गया।
और जब कलम पकड़ी तो जीवन में एक महत्त्वपूर्ण बात हो गई। एक महान् क्रान्तिकारी वस्तु ने जन्म ग्रहण किया। इस प्रकार व्यापारी जब कलम लेकर चला तो, एक जगह के भंण्डार को, जहाँ उत्पादन ज्यादा है और आवश्यकता कम है, दूसरी जगह, जहाँ उत्पादन कम और आवश्यकता अधिक है, पहुँचाने लगा। वह एक जगह से दूसरी जगह घूमता है और जनता की आवश्यकता की पूर्ति करता है और पुरुषार्थ करता है। उसमें उसका भी स्वार्थ है। इसी व्यापार के द्वारा वह अपनी आजीविका भी कमा लेता है। पर उसकी दृष्टि इतनी विशाल और सेवामयी है कि उसमें स्वार्थ की प्रधानता नहीं है। आखिर तो व्यापारी के साथ भी पेट लगा है, स्त्री है, बाल-बच्चे हैं.
और उनके भरण-पोषण का उत्तरदायित्व उसके सिर पर है। वह अपना समय और शक्ति जनता की इसी सेवा में लगा रहा है और अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई दूसरा धंधा नहीं करता। ऐसी स्थिति में अगर वह इस आयात-निर्यात में से ही अपने निर्वाह का साधन न जुटाये तो क्या करे ? इस रूप में आयात और निर्यात के साथ तीसरी चीज-नफा का भी प्रादुभार्व हुआ । ___ यही व्यापार का आदि इतिहास है। जनता के मंगल के लिए ही उसका सूत्रपात हुआ। इस प्रकार आर्य-सभ्यता में पहला नम्बर कृषि का है तो दूसरा व्यापार का । कृषक और व्यापारी :
किसान एक जगह कृषि करता है। वह जहाँ रहता है वहीं रहता चला जाता है और पीढ़ियाँ की पीढ़ियाँ वहीं गुजार देता है। उसकी स्थावर सभ्यता एक जगह केन्द्रित है। इस कारण जनता के ऊपर उसका व्यापक प्रभाव नहीं होता है। मगर 'व्यापारी की सभ्यता जंगम है । वह भूमण्डल के एक-एक कोने को छानता है और जगह-जगह जाता है। वह जाता है तो मैं समझता हूँ कि उसे सच्चा व्यापारी बन कर जाना चाहिए और इंसान बन कर जाना चाहिए। अगर वह लुटेरा बन कर जाता है, दूसरे जीएँ या मरें इस बात की चिन्ता न करते हुए केवल पूँजी बटोरने के लिए ही
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