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२०/ अस्तेय दर्शन
प्रकार अगर आप अपना विश्वास कायम रखते हैं तो आपको प्रतिष्ठा भी मिलेगी, सम्पत्ति भी मिलेगी और शान्ति भी मिलेगी। जो जितना ही अधिक विश्वासपात्र होगा, वह उतना ही ऊँचा चढ़ सकेगा। इसके विपरीत अगर आप व्यापारी अपनी प्रतिष्ठा को खो देते हैं और देश में अपनी इज्जत खत्म कर देते हैं, तो फिर पनपना कठिन हो जायगा। एक ऐसी गड़बड़ पैदा हो जायगी कि उसे सँभालना आपके वश की बात नहीं रहेगी।
आज के व्यापारी को देखते हैं तो स्थिति बड़ी निराशा-जनक प्रतीत होती है। हालत यहाँ तक गिर गई है कि चीज को लेते और देते समय व्यापारी के तोलने के ढंग भी न्यार-न्यारे हो गये हैं। देने के बाँट अलग रक्खे जाते है और लेने के बाँट अलग होते हैं । जिस तराजू का आदर्श बड़े-बड़े सम्राटों के आगे गया और उन्होंने अपने सिक्कों पर तराजू का चिन्ह अंकित किया और कहा कि हम इन्साफ और न्याय को तराजू की तरह तोलेंगे वही तराजू अगर अपनी प्रतिष्ठा पर पानी फेर दे तो क्या शोचनीय बात नहीं है ? न्याय एवं नीति :
तराजू न्याय-नीति का प्रतीक है। तलवार उठाने वाले सम्राट भी तराजू की तरह न्याय करने की घोषणा करते थे। परन्तु आज तो वह तराजू ही बदल गई है। लेते समय कुछ और है और देते समय कुछ और है।
एक सेठ के तीन लड़के थे। उनके नाम थे घटाऊ, बढ़ाऊ और पूर्ण । उसके यहाँ कोई माल बेचने आता और लेना होता तो बढ़ाऊ को, जब देना होता तो घटाऊ को
और जब कोई राज-कर्मचारी आता तो पूर्ण को माल तोलने के लिए कह देता था। लड़के भी ऐसे प्रशिक्षित बना लिए गये थे कि वे क्रमशः ज्यादा, कम और बराबर तोल का अपना-अपना कर्त्तव्य अदा करते थे। इसी रूप में उसने अपने लड़कों के मतलब के नाम रख लिए थे और वह इसी तरह व्यापार किया करता था।
परन्तु भगवान् महावीर ने कहा है कि इस प्रकार का जो व्यापार होता है, वह चोरी का काम है। ऐसा करने वाले का श्रावकपन कायम नहीं रह सकता है। कमती देना और ज्यादा लेना, भगवान महावीर की निगाह में चोरी है।
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