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१८ / अस्तेय दर्शन
पिहुण्डे ववहरंतस्स, वाणिओ देइ धूयरं ।
तं ससत्तं पइगिज्म, सदेसमह पत्थिओ ॥ वहाँ के एक प्रतिष्ठित नागरिक ने पालित की प्रामाणिकता को देखकर, और जीवन के अन्दर सुन्दर छाप देखकर अपनी कन्या का विवाह उसके साथ कर दिया।
आप कह सकते हैं कि उसने ऐसा क्यों कर लिया ? वह श्रावक था या नहीं? और इस प्रकार आपकी बुद्धि कोने तलाश करने लगती है। आपको अपनी मानी हुई संस्कृति की रक्षा की चिन्ता जाग जाती है और आप कहने लगते हैं, वह पहले श्रावक नहीं बना होगा। बाद में श्रावक बना होगा और इसी कारण वह विवाह करके आ गया !
किन्तु बात यह है कि पालित व्यापार के लिए गया था और विदेश के व्यापारी ने उसे अपनी कन्या ब्याही। यदि उसने वहाँ अपने उच्च चरित्र का, ऊँची सभ्यता का और प्रामाणिकता का परिचय न दिया होता तो उसे वह अपनी लड़की नहीं दे सकता था। पालित श्रावक बड़ा ही विद्वान और सच्चा विचार करने वाला था। जब वह जहाज से रवाना हुआ तब भी शास्त्र ने उसे श्रावक करार दिया। और जब लौट कर आया, तब भी श्रावक की भूमिका में लौट कर आया। उसके जीवन में एकरूपता है। जैसा पहले रहा, वैसा ही बाद में भी रहा ।
आशय यह है कि भारतीय व्यापारी वर्ग ने अपने उच्च आचार-विचार के द्वारा ऐसी सुन्दर छाप छोड़ी और इतने सुन्दर विचार छोड़े कि भारत के साथ अनेक देशों के मधुर सम्बन्ध ही स्थापित नहीं हुए, बल्कि उन देश वासियों ने अपने बालकों और बालिकाओं के विवाह सम्बन्ध भी किए।
तो एक व्यापारी अगर ठीक व्यापारी बना रहता है और अपनी संस्कृति का अग्रदूत बन कर चलता है तो वह धन भी कमाकर लाता है और मीठे सम्बन्ध भी स्थापित कर आता है। इस दृष्टिकोण से विचार करने पर ज्ञात होता है कि समाज में व्यापारी का स्थान बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है । उस समय के व्यापारियों ने समाज में आदरपूर्ण स्थान प्राप्त किया था। आज की भाँति उनके प्रति जनता की घृणा नहीं बरसती थी। सच पूछो तो आज समाज में व्यापारी की अगर कुछ भी प्रतिष्ठा हो तो उसका श्रेय भी प्राचीन काल के व्यापारियों को ही है। उनके उदार दृष्टिकोण, लोक-कल्याण की भावना, प्रामाणिकता और सचाई के कारण जनता में व्यापारी का
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