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अस्तेय दर्शन/२१
इसी प्रकार व्यापारी के पास खोटे सिक्के आ जाते हैं और वह उन्हें दूकान में इकट्ठा कर लेता है और सोचता है कि कोई न कोई भोला आदमी, रात-विरात ले ही जायगा।
सौदे-सट्टे का बड़ा व्यापारी कभी-कभी सौदे का भाव इतना ऊँचा चढ़ा देता है और कभी इतना गिरा देता है कि मध्यम वर्ग अपनी स्थिति को सँभालने में असमर्थ हो जाता है, बुरी तरह पिस जाता है। देखते हैं, बम्बई के बड़े-बड़े व्यापारी भावों में काफी घटती-बढ़ती करके हजारों गरीबों का शोषण कर लेते हैं। फिर मध्यम वर्ग ज्योतिषियों के पास दौड़ा जाता है। वे उसे आशीर्वाद देते हैं, पर उनका आशीर्वाद भी कुछ काम नहीं आता। क्योंकि वे बड़े बाबाजी जो बैठे हैं। असली बात तो उनके हाथ में है। वे जब और जिस रूप में चाहें, बाज़ार को हिला सकते हैं । मध्यम वर्ग के ग्रहों
और नक्षत्रों के संचालक मानो वही हैं और उनकी घूस खाकर ग्रह और नक्षत्र भी उन बेचारों को धोखा दे देते हैं।
यह सब क्या है ? यह साधारण चोरी नहीं, चोरी का एक बड़ा अंग है। जैन सिद्धान्त इसे चोरी मानता है क्योंकि इस प्रकार की प्रवृत्ति में दूसरों का हक हड़प जाने की भावना है।
वास्तव में आज की परिस्थिति बहुत चिन्तनीय है। आज व्यापार का ढंग कुछ का कुछ हो गया है। व्यापारियों को मर्यादा में रखने के लिए सरकार एक कायदा बनाती है और नियन्त्रण लगा देती है। कहने को तो व्यापारियों के हाथ-पैर बाँध दिये जाते हैं और वे ऊपर से चोरी करते दिखाई नहीं देते हैं, परन्तु अन्दर ही अन्दर उनके हाथ-पैर लम्बे फैल जाते हैं। आज व्यापारी ब्लैक मार्केट के रूप में हजारों का शोषण करता जाता है और धन का संग्रह करता जाता है । वह उस धन को बहीखाते में नहीं चढ़ाने पाता तो तिजोरियों में भरता जा रहा है। इस प्रकार जन-जीवन में से धन का संचार रूक गया है और वह एक जगह पड़ा-पड़ा सड़ रहा है।
चोर के द्वारा की जाने वाली चोरी का सम्बन्ध यद्यपि सामाजिक और राष्ट्रीय व्यवस्था के साथ भी है, परन्तु प्रत्यक्ष सम्बन्ध एक व्यक्ति के साथ है। परन्तु आज का काला बाजार उसके मुकाबिले में भी गुरुतर अपराध है। उसका सम्बन्ध एक-दो गिने-चुने व्यक्तियों के साथ नहीं है, अपितु समग्र देश के साथ है, देश की करोड़ों
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