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अमण साहित्य में गणित विभिन्न सम्प्रदाय
करने पर भावतः उनसे शून्य रहते थे। इसके पालक प्रायः ७. गोव्रती-गोव्रत रखने वाले। ब्राह्मण रहा करते थे। प्रत. वे अपने आपको प्रहन्तव्य ८. गृहिधर्मी-गृहस्थाश्रम को ही श्रेष्ठ मानने वाले । मानते थे। उनका मत था- शद्रं व्यापाद्य प्राणाय में है. धर्मचिन्तक-धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वाले। जपेत् किञ्चिद् दद्यात् ।' पालि साहित्य मे भी प्रारण्यकों १०. अविरुद्ध-विनयवादी। पौर परिव्राजकों के पर्याप्त उल्लेख मिलते है।
११. वृद्धा-संन्यास में विश्वास रखने वाले । अन्य सम्प्रदाय :
१२. श्रावक-धर्मश्रोता। उपर्युक्त सम्प्रदायो के अतिरिक्त श्रमण साहित्य में रक्तपट-रक्त वस्त्रधारी परिव्राजक'। और भी अनेक प्रकार के सम्प्रदायों के उल्लेख मिलते है। श्रमण साहित्य में पर मतों का उल्लेख अनेक नामों से प्रश्न व्याकरण मे असत्यमापक के रूप में सम्प्रदायों का हुमा है-जैसे एगे पवयमाणा, अन्य यूथिकाः, पासत्था, विभाजन इस प्रकार किया है
दिसाचरा, मन्यतीथिकाः, मिथ्यादृष्टि वाला प्रादि । इस१. नास्तिकवादी अथवा वामलोकवादी-चार्वाक लिए उनका सही विवरण मिलना कठिन हो जाता है । २. पंचस्कन्धवादी
बौद्ध
सूत्र कृतांग के कुशील अध्ययन में चर्णिकार ने कुछ प्रसंयमी ३. मनोजीववादी
सम्प्रदायों का उल्लेख किया है। उनमें प्रमुख हैं - गौतम, ४. वायुजीववादी
गोवतिक, रंडदेवता, वीरभद्रक, अग्निहोमवादी तथा जल५. अन्डे से जगत की उत्पत्ति मानने वाले ।
शोचवादी। ऋषिअषित' ग्रंथ में कुछ अहंदरूप ऋषियों ६. लोक को स्वयंभूकृत मानने वाले।
का उल्लेख है। उनमे से कुछ ये है-असितदेवल, अंगि७. संसार को प्रजापति निर्मित मानने वाले। रस, (भारद्वाज), महाकश्यप, मंखलिपुत्त, याज्ञवल्क्य, ८. सारे संसार को विष्णुमय मानने वाले ।
बाहुक, माथुरायण, सोरियायण, परिसव कण्ह, परियोयण, ६. प्रात्मा को एक प्रकर्ता, वेदक, नित्य, निष्क्रिय, गाधापतिपुत्र तरुण, रामपुत्र, हरिगिरि, मातंग, वायु, पिग और निलिप्त मानने वाले।
ब्राह्मणपरिव्राजक, अरुण महासाल, तारायण, सातिपुत्र १०. जगत को यादृच्छिक मानने वाले ।
(बुद्ध), द्वैपायन, सोम, यम, वरुण, वैश्रमण । ११. स्वभाववादी।
प्रोपपातिक सूत्र में गंगातटवासी वानप्रस्थों का १२. देववादी।
उल्लेख मिलता है१३. नियतिवादी।
१. होत्तिय-अग्नि होम करने वाले। १४. ईश्वरवादी।
२. पोत्तिय-वस्त्रधारी। 'नायाधम्मकहानो' के नंदीमूल नामक पन्द्रहवें अध्याय ३. कोत्तिय-भूशायी। में एक संघ के साथ विविध मत वालों के प्रवास का ४. जण्णई -याज्ञिक । उल्लेख है । उन मत वालों के नाम ये हैं
५ सड्ढई ---श्रद्धाशील । १. चरक-त्रिदण्डी अथवा कछनीधारी-कोपीनधारी तापस ६ थालई -सारा सामान लेकर चलने वाले । २. चीरिक -चीथड़ों से निमित वस्त्रधारी।
७ हुंव उड्ढ-कुण्डी लेकर चलने वाले । ३ चर्मखण्डिक चर्मवस्त्र अथवा चर्मोपकरण रखने वाले। ८ दतुम्वलिय-दांतों से चबाकर खाने वाले । ४. भिच्छुड-भिक्षुक अथवा बौद्ध भिक्षुक ।
६ उम्मज्जक, सम्मज्जक और निमज्जक-स्नान करने ५. पंडुरग- शिवभक्त, भस्म लगाने वाले ।
वाले । ६. गौतम -साथ मे बैल रखने वाले भिक्षक ।
१०. संपवाल-शरीर पर मिट्टी लगाकर स्नान करनेवाले १. सूत्र. २,२,२८.२६ ।
२. प्रौपपातिक ३८वा सूत्र भी देखिये। १. मध्ययन २६ व ३१ ।