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वर्ष १५
चंद वदनी पोकारती डारती, मंडन हार उर चीर। लगता है और न वदन पर प्राभूषण ही सुहाते हैं। इसे रतनकीरति प्रभू भये वैरागी, राजुल चित कियो धीर ॥३॥ कवि के शब्दों में पढ़िये
एक पद में राजुल अपनी सखियों से नेमि से मिलाने राग असावरी की प्रार्थना करती है। वह कहती है कि नेमि के वियोग
प्रा जेष्ट मासे जग जलहरनो उमाह रे । में योवन, चंदन, चन्द्रमा ये सभी फीके लगते हैं। मात,
काई बाप रे वाय विरही किम रहे रे ॥ पिता सखियां एवं रात्रि सभी दुख उत्पन्न करने वाली हैं
प्राररते भारत उपजे प्रङ्ग रे । इन्हीं भावों को रत्नकीति के पद में देखिये
अनंग रे संतापे दुख केहे रे ।। सखी,! को मिलावे नेमि नरिंदा ।
केहनें कहे किम रहे कामिनी आरति अगाल । ता विन तन मन यौवन रजत हे चारु चंदन अरु चंदा ॥१॥
चारु चंदन चीर चिंते माल जाणे व्याल ।। कानन भुवन मेरे जीया लागत, दुःसह मदन को फंदा ।
कपूर केसर केलि कुंकम केवड़ा उपाय । तात मात अरु सजनी रजनी, वे अति दुख को कंदा ॥२॥
कमल दल जल छांटणा वन रिपु जांणे वाय । तुम तो शंकर सुख के दाता, करम अति काए मंदा ।
भावे नहीं भोजन भूषण, कर्ण केरा माप । रतनकीरति प्रभु परम दयालु, सोवत अमर नरिदा ॥३॥
परी नग में पान नीको, रालि करें कर माप । अन्य रचनायें
गिरिनारि केरो गिरितपे, सखि जेष्ट मास विसेष । इनकी अ य रचनाओं में नेमिनाथ फाग एवं नेमि
दुःसह दीन दोहिला लागे, कोमला सलेषि ॥ ॥ बारह मासा के नाम उल्लेखनीय है। नेमिनाथ फाग में
इस प्रकार सन्त रत्नकीति अपने समय के प्रसिद्ध ५७ पद्य हैं। इसकी रचना हांसोट नगर में हुई थी। फाग में नेमिनाथ एवं राजुल के विवाह, पशुओं की पुकार सुनकर भट्टारक एवं साहित्य सेवी विद्वान् थे। इनकी अभी और विवाह किये बिना ही वैराग्य धारण कर लेना और अन्त भी रचनाएँ उपलब्ध होने की आशा है । इनके द्वारा रचित में तपस्या करके मोक्ष जाने की प्रति संक्षिप्त कथा दी हुई पदों की (जो अभी तक हमें उपलब्ध हुये है) प्रथम पंक्ति है। राजुल की सुन्दरता का वर्णन करते हुए कवि ने एक निम्न प्रकार हैस्थान पर लिखा है
१. पद-सारंग ऊपर सारंग साहे सारंगत्यासार जी चंद्रवदनी मृगलोचनी मोचनी खंजन मीन ।
२., -सुण रे नेमि सामलीण साहेब क्यों बन छोरीजाय । वासग जीत्यो वेणिई, श्रेणिय मधु कर दीन ।।
, -सारंग सजी सारंग पर आवे युगल गल दाये शशि, उपमा नाशा कीर ।
,, -वृषभ जिन सेवो बहु सुखकार अधर विद्रुम सम उपता, दंतनू निर्मल नीर ।।
, -सखीरी सावन घटाई सतावे चिबुक कमल पर षट पद, पानंद करे सुधापान ।
-नेमि तुम कैसे चले गिरिनार ग्रीवा सुंदर सोभती, कंबु कपोल ने वान ॥१२॥
७., कारण कोउ पिया को न जाणे नेमि बारह मासा इनकी दूसरी बड़ी रचना है । इसमें -राजुल गेहे नेमी जाप १२ त्रोटक छंद हैं। कवि ने इसे अपने जन्म स्थान घोधा ६., -राम ? सतावे रे मोही रावन नगर के चैत्यालय में लिखा था। इसमें राजुल एवं नेमि १०., -प्रब गिरि वरज्यो न माने मेरो के १२ महीने किस प्रकार व्यतीत होते हैं यही वर्णन करना ११. -नेमि तुम मापो धरिय घरे रचना का मुख्य उद्देश्य है। ज्येष्ठ मास का वर्णन करते १२.,, -राम कहे अवरं जपा मोही भारी हुये कवि ने लिखा है इस मास में काम इतना सताने १३.,-दशानन ? वीनती कहत होइ दास लगता है कि चंदन का लेप एवं केवड़ा जल का स्नान भी १४., --वरज्यो न माने नयन निठोर उसके काम वृद्धि में सहायक होते हैं। न भोजन अच्छा १५.,-झीलते कहा करचो यदुनाथ
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