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अज्ञानतिमिरनास्कर. थार्थ सच्चे मोदमार्गका निर्णय करना बहुत कठिन है. क्योंकि जो जो मतग्राही है वे सर्व अपने अपने ग्रहण करे मतोंकों सच्चे मानते है. उनको किसीमतके शास्त्रका स्वाद नही और जो प्रेक्षावान है और सत्यके ग्राहक है ननही वास्ते यह ग्रंथ है. क्योंकि पदपात करि रहितही पुरुषोको शुः धर्मकी प्राप्ति होती है. इस ग्रंथका इस ग्रंथके लिखनेकातो प्रयोजन इतनाही है कि प्रयोजन. वर्तमान समयमें इस आर्यखंममें हिंज्योंके जो मत चल रहे हैं तिनमेंसें जैन बौध वर्जके सर्व मतांवाले वेदोंकों सच्चा शास्त्र मानते है. परंतु वेदों में क्या लिखा है और किस किस प्रकारके कैसे कैसे देवतायोंकी नक्ति पूजा यज्ञादिक लिखे है और वेद किसके बनाये है और किस समयमें बने है यह बात बहुत लोक नही जानते तिनको पूर्वोक्त सर्व मालुम हो जावेगा और जैनीयोंका क्या मत है यहनी मालुम हो जावेगा. वेदके पुस्तक वर्त्तमान संस्कृत नाषासें कुक विलक्षण संस्कृतमें है. इस वास्ते पौराणिक पंडितोंसे वेदांका यथार्थ अर्थ नही होता है. सायनाचायदि जो नाष्यकार हो गये है तिनके करे नाष्य जब हाथमें लेकर बांचीएतो वेदांका अर्थ प्रतीत होते है. वेद विरुद्ध म. वेदके प्रत्येक वाक्यकी मंत्र ऐसी संज्ञा है. वेद ब
प्रदान हुत कालके बने हुए है परंतु कपिल, गौतम, पतंजलि, कणादादिकोंने जो वेदांको गेमके नवीन सूत्र बनाये है तिसका कारणतो ऐसा मालुम होता है कि वेदकी प्रक्रिया अटी नहीं लगी होगी नहींतो वेदोंसे विरुद कथन वे अपने ग्रंथोमें क्यों लिखते. क्योंकि वेदोमंतो यज्ञादिक कर्मसें स्वर्गप्राप्ति लिखी है.
और उपनिषद् नागमें अद्वैतब्रह्मके जाननेसे मुक्ति कही है, और प्रज्ञानानंदब्रह्मका स्वरूप लीखा है, और सांख्यमत वाले यज्ञादिकोंको नहीं मानते है. मानना तो उर रहा यज्ञमें पशुवधकों ब
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