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प्रज्ञापना-६/-/३३२
दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात । इसी प्रकार सातवीं नरकपृथ्वी तक समझ लेना असुरकुमार से स्तनितकुमार तक यहीं कहना ।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रतिसमय विना विरह के असंख्यात उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वायुकायिक तक कहना । वनस्पतिकायिक जीव स्वस्थान में उपपात की अपेक्षा प्रतिसमय विना विरह के अनन्त उत्पन्न होते हैं तथा परस्थान में प्रतिसमय विना विरह के असंख्यात उत्पन्न होते हैं ।
भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक, सम्मूर्छिम मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, सौधर्म यावत् सहस्रार कल्प के देव, इन सब को नैरयिकों के समान जानना । गर्भज मनुष्य, आनत यावत् अनुत्तरौपपातिक देव; ये सब जघन्यतः एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्टतः संख्यात उत्पन्न होते हैं । सिद्ध भगवन् एक समय में जघन्यतः एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्टतः एक सौ आठ होते हैं।
[३३३] भगवन् ! नैरयिक एक समय में कितने उद्धर्तित होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात । उपपात के समान सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरीपपातिक देवों तक उद्धर्तना में भी कहना । विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक के लिए 'च्यवन' शब्द कहना ।
[३३४] भगवन् ! नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिकों तथा मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो कौन से तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) सिर्फ पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि पंचेन्द्रितिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो कौन से पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) जलचर, स्थलचर और खेचर तीनो से उत्पन्न होते हैं । वे जलचरपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में सम्मूमि और गर्भज दोने से आकर उत्पन्न होते हैं । (वे) सम्मूछिमजलचरपंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों में पर्याप्तक सम्मूर्छिमजलचरपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तक से नहीं । भगवन् ! यदि गर्भज-जलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तक से (अथवा) अपर्याप्तक-गर्भजजलचरपंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) पर्याप्तक-गर्भज-जलचर से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्त से नहीं ।
(भगवन् !) यदि (वे) स्थलघर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या चतुष्पद-स्थलचर से उत्पन्न होते हैं ?, (अथवा) परिसर्पस्थलचर से ? गौतम ! (वे) चतुष्पदस्थलचर से भी और परिसर्प-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं । यदि चतुष्पदस्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यम्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो (वे) सम्मूर्छिम से भी और गर्भजचतुष्पद-स्थलचर से भी उत्पन्न होते हैं, यदि सम्मूर्छिम-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं, तो (वे) पर्याप्तक-सम्मूर्छिम० से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तक० से नहीं। यदि गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यम्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो (वे) संख्यात वर्ष आयुवाले गर्भज-चतुष्पद० से उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष आयुवाले० से नहीं । यदि (वे) संख्यात वर्ष की आयुवाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क० से होते हैं, अपर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क० से नहीं ।