Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिजोवपत्तिका गणित
(गा. १, २३२-३३)
(७) दृष्य क्षेत्र- यह आकृति-१७ कथित क्षेत्र का उदन छेद ( vertical section) है। इसके आगे पीछे ( उत्तर दक्षिण) के विस्तार ७ राजु का चित्रण यहाँ नहीं हुआ है।
बाहरी दोनों प्रवण क्षेत्रों का घनफल राजुx १४ राजु४७४२ ie oJAB+01 HG = ९८ धनराजु ।
भीतरी दोनों प्रवण क्षेत्रों का घनफलx७४२ xkoB+Y KTG--१३७५
धन राजु । दोनों लघु प्रवण क्षेत्रों का घनफल३४७४२ L NDo+xxBF२=५८५
घन राजु । यव क्षेत्र- यव का घनफल : oxxx+KINu+N DE (३+३+
४)+७=१.४७-४९ घनराजु ।
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(गा. १, २३४) (८) गिरिकटक क्षेत्र-पांचवीं आकृति, यव मध्य क्षेत्र, को देखने पर शात होता है कि उसमें २० गिरियां है। एक गिरि का घनफलषनराजु है, इसलिये २० गिरियों का घनफल २०४६ १९६ पन राजु प्राप्त होता है। ३५ यवमध्यों का घनफल ३४३ घन राजु आता है जो ( २०गिरियों के समह में शेष उल्टी गिरियों के घनफल को मिला देने पर) कुल गिरिकटक क्षेत्र का मिश्र घनफल
कहा गया है। इस प्रकार हमें गिरिकटक क्षेत्र Immm.. -.
और यवमध्य क्षेत्र के निरूपण में विशेष भेद नहीं
मिल सका है। अर्थ इस भाति है कि भूमि ६ बोवन को
भागों, १ भाग और ३,२,३,६ राजुओं में विमक किया है। उचाई को समान रूप से विभक करने पर विस्तार ३ राजु लिखा हुआ है और १४ राजु ऊँचाई को ७,७ राज में विभक्त कर लिखा गया है। .
प्र.७२।१२ का अर्थ ५४५४२. भर्षात् राजु हानि-वृद्धि प्रमाण हो सकता है । शेष स्पष्ट नहीं है।
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