Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 437
________________ २२ ६ जं लद्धं णायव्वा जा दक्खिणदीवंते जा पुव्वुत्ता संखा जावदिय जंबुगेहा जावदिय जंबुभवणा जावदियाणि य लोए जाव दु विदेहवंसो m ه ه س س १०४ र ه م م م م و जंबूदीवपएणत्ती ८१ | जो खुहतिसभयहीणो ६६ | जो जस्स पडिणिही खलु ७७/ जोदिसगणाण संखा १३४ / जो दु अगवग्गहणाणी १३३ जो बहुवो सो हु कडी ८७ जो मंगलेहि सहिदो जो मिच्चुजरारहिदो १२ | जोयणअठ्ठावीसा १०३ | जोयणभठुच्छेधा ज़ोयणपंचुप्पइया १६५ जोयणमुहवित्थारा २७ जोयणमेत्तपमाणो १६२ जोयणसदेक्क बे चउ जोयणसयायामा ४६ २८३ १०६ १६९ जिणइंदवरगुरुणं जिणइंदाणं चरियं जिणइंदाणं ऐया जिणइंदाणं पडिमा जिणपडिमासंलगणो जिणभवणथूहमंडवजिणभवणस्सवगाढं जिणभवणाण वि संखा जिणवरवयणविणिग्गयः जीवा गुरुअणुसुद्धा जीवावग्गविसोधियजीवावग्गं इसुणा जीवाविक्खंभाणं जुवला जुवला जादा जे उप्पएणा तिरिया जे उप्पण्णा तिरिया जे कम्मभूमिजादा ew SENFace when onion as १०५ ૨૫૬ ४५ ११ जो २३४ २१० २८ سه عر عر م ه ع ع م م م ه ه م م ه س م ه ه ه ر نه به شه سه ७५ जोयणसयउन्विद्धा ३१ | जोयणसयतुंगं २६ | जोयणसयप्पमाणा १२ | जोयणसयमुश्विद्धा जोयणसयं समहियं १७२ जोयणसहस्स एदे १८० जोयणसहस्सतुंगा १७ | जोयणसहस्सतुंगो १५३ १७३ १०४ डोलाघराय रम्मा २३७ १६० ढक्कामुदिंगझलरिदुक्कित्तु तिमिसदारं १४४ २४४ १२४ जे कम्मभूमिमणुया जे पुण सम्मादिट्ठी जे वह्दिा दु चंदा जे सेसा णरतिरिया जोइसदुमा वि णेया जोइसवरपासादा जो उप्पएको रासी १११ णइयाइयवइसेसिय उदिसएण विभत उदिसदेहि विभत्तं | दि चेव सहस्सा 15 एउदी चउदसलक्खा जो कम्मकलुसरहियो जो कल्लाएसमग्गो. 06 N Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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