Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 443
________________ दिव्वामोदसुगंधा ६२ १३८ ... जंबूदीवपएणती - २६ | देवासुरिंदमहिया १२७ देवीण तिएिणपरिसा देवेसु वि इंदत्तं देवेसु सुसससुसमो देसम्मि तम्मि णयरी देसम्मि तम्मि णेया देसम्मि तम्मि मज्मे २०८ ३५८ १७५ १६७ For murug 222- १६४ देसम्मि तम्मि होइ य देसम्मि होइ गरी देसम्मि होइ एयरी देसस्स तस्स ऐया १३४ स १७१ १३५ १४५ ३६ ११७ ३१ ११६ १२५ १३४ १03 दिव्वामोयसुयंधा दिसकरिवरसेलाणं दिसविदिसंतरदीवा दिसिगयवरणामाणं दिसिगयवरेसु अट्ठसु दीवस्स दु विक्खंभे दीवस्स पढमवलए दीवस्स समुदस्स य दीवंगदुमा णेया दीवं सयंभुरमणं दीवाण समुद्दाण य दीवेसु तेसु णेया दीदेहि य धूवेहि य दीवोदधिसेलाणं दीवोदहीण रूवा दीवोवहिपरिमाणं दीवोवहीण एवं दुकला बेकोसहिया द्वगुणम्हि दु विक्खंभे दुविधो य होदि कालो दुट्विट्ठियणावुट्ठी दुस्समकालादीए दुस्समकालो णेश्रो दुस्समदुसमे मणुया दूरेण य जं गहणं देउत्तरकुरुखेत्तं देवकुरुम्मि दुवंसे देवच्छंदसमायो देवा चउरिणकाया देवाण भवणाणिवहो देवारण्णचदुएणं देवारणम्मि तहा देवासुरिंदमहिदे देवासुरिंदमहियं देसस्स तस्स दिट्ठा तस्स मज्मे देसस्स तिलयभूदा देसस्स मज्मभागे २०३ १८६ देसस्स रायवाणी ११४ देहि त्ति दीणकलुणा १८८ दोजमगाणं अंतर दो जमगा णाम गिरी १७७ | दोणामुहेहि छएणो १४८ दोणामुहेहि य तहा दोण्हं गिरिरायाणं दोएहं मेरूण तहा दोएहं वाससहस्सा | दोमेच्छाणं खंडा १ror Uruaruuuuuuuwwwuuuuuwwwxxx9 du २०० ur or १२४ १६० બ + १३० ६ દદ ध 9 Form १ धइवदसरेण जुत्ता ८०) धणधरणरयणणिवहो १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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