Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text ________________
४०
शाल्मलि तुम शिखरी
शिखरीकूट शिलामय
शुक्र
शुभा
श्रद्धावती
श्रीकान्ता
श्रीकूट
श्रीनिलया
श्रीभद्रा
श्रीमहिता
श्वेत
सनत्कुमार
सभागृह
समित
सम्भ्रान्त
सरिता
सर्वतोभद्र
सर्वार्थ
सहस्रार
संघाट
संज्वलित
संप्रज्वलित
सागर
सायर
सिद्धकूट सिद्धार्थवृक्ष
सिंधु
१-७० | सिंधुकूट ३-३ | सिंधुतोरण ३-४५ सिंहपुरी ११ - ११९ | सीता ११- ३३२ | सीताकूट ८- १६७ | सीवोदा ३-२०६, ६-२१ सीतोदाकूट ४-११२ सीमंतक
स
जंबूदीवपणती
Jain Education International
३-४० सुकच्छा ४-११२ सुखावह
""
सुदर्शन सुदर्शन जंबू
""
४-६३ सुधर्मा
पद्मा सुप्रबुद्ध
११- ३२८ | सुभद्र
५-३८ | सुमनस ११-३२२ सुरम्या ११- १४७ | सुरस द्रह ६-७३ सुराकूट
११- ३१७ | सुवत्सा
११- ३३६ | सुवर्णं ११-३३२ | सुवर्णकूला
११-१४७ | सुवर्णतेज
११- १५२ सुवल्ग
सुविशाल
39
४- १०३ | सुसीमा ११- ३३३ | सूरद्रह २- ४६, ३–४०, ४१
सूर (सूर्य) पर्वत ५-४७ सौधर्म २-६३, ३-१६३ | सौधर्म सभा
३- ४० | सौमनस ४-६४, ६-३, ११-३३६ सौमनस वन
३ - १७६
४-१२६, ११-२५
११-१४६
६-२७
स्तनक
३- १६२, ६-५५ स्तनलोलुक ३-४३ | स्तूप ३-१६३, ६-४४ स्फटिक ३-४२ | स्फटिका ११- १४६ | स्रोतोवाहिनी ८- ६ |स्वयम्भुरमण ६-७०
४- १, ११-३३४
स्वयम्भुरमण द्वीप स्वस्तिक
६-५७ स्वातिवृक्ष
११-२१४, २२७
६-२४ ११-३३४
११- ३२०, ३३५ हरिकान्ता ११- ३३६ |हरित् ८- १५० हरित्कूट ६-८३ | हरिवर्ष ३ - ४० ८- ११४
हरिवर्षकूट हरिविजय कट
४-६१ हरिकान्ता
३- १६२ | हारिद्र ४-११ हिम
For Private & Personal Use Only
६- १३६ | हिमवन्त
११- ३३५ हिमवन्त कूट - १०७ |हैमवत
६-८३ हैमवत कट ६- ११६ | हैरण्यवत ११-२१३ | हैरण्यवत कूट ११-२१६ | ह्रीकूट
११- १५०
५-४१
११-२०६
११- ११८
६-६०
२- १६७
११-८८
४-७५
६-१४५
३-१९३
३-१६२
३-४२
२-२
३-४१
३-४२
३-४१
४-६३, ११-२१० ४-१०३, ११-१५५
३-३
३-४०
२-२
३-४०
२-२
३-४४
३-४१
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480