Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 473
________________ १६२ २०७ मिवंकवनामो रोहिदा सा मिरीइबेल्सि सहस्सा रोहिदा दिन मरीषियक्ति सहस्साई २१३ २१७ सचभूमिया पहियापुठि सिहरो सत्समिया पइठो कवलीयापुहि सिहरे ६ ४९ ५४ ५७ ६६ 999 ૧૫ १६२ २०५ २०७ करयुरिय कप्तरिय दीसरयणाम दीवस्स मंदीसरणामयदोबस्स धुबर कयषण भइसालवणे मसालरणे गंदणवणम्मि दंसमवयम्मि भिंगा भंभा तलमागे तलभागो (आमेर प्रतिमें गाथा १४१-४२ के सयजोयणमायामा विवारसदहति णिहिट मध्यमें यह गाथा भधिक पायी अठेव जोयगाइं उगायो वरसिलामो ।। जाती है-) दिव्वा दिव्वे किरणोहा किरणामा संछण्णा संजुत्ता मादिधणं xxxसव्वाणं ।। आदिगुणं xxxणायब्वं ।। उच्छंग उत्तुंग हत्थिहडावं इत्थिघडाणं परिमाणं घरमदेहा एगेगदिसाभागे यायव्या तस्स बहुवरणचंपियाईणेयाई भवंतिणागस्स ।। सागस्स ॥ दप्पुप्पाइय दप्पुप्पाई विविहेहि बहुपहिं देसयं पउमणाई देखिगं पउमा पासादे पासादो फलिहमणिमिति फलिहममिति पलियंकासहसंगद. पलियंकलिसरबगदा २१० २१७ २५५ २६५ २८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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