Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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जबूदीवपएणची ६७ | बेघणुसहस्सतुंगो
बे सत्तदस य चउदस ५६ / बेसागरोवमाई
| बेसायरोवमाई ७७ बेहत्येहि य किक्खू
રૂ૫૨ २५१ २६६
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बाहिरपरिसाहिवई बाहिरसूचोवग्गो बिरिणसया.णायव्वा बिदिओ दु जो पमाणो बिदियम्मि कालसमए बिदियादीकच्छाणं बिंबाणि समुहिट्ठा बुद्धिपरोक्खपमाणो बुद्धिल्ल गंगदेवो बेकोससमधिरेया बेकोससमहिरेया
१२१ ।
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२४८ ७६ | भज्जति कडकडेहि
भणिदो य अधोलोगो
भरहवखंडणाहा २२ भरहस्स जहा दिट्ठा १६० भरहस्स दु विक्खंभो
भरहेरावद एक्के भरहेरावय मज्मे भवणवइवाणविंतर
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बेकोसा बासट्टा
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बेकोसा विक्खंभा बेगाउदउत्तुगा बेगाउदउन्विद्धा
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१८४ भवणाणि जिणिंदाणं
भवणाणि ताण दिट्ठा १२८ भवणाणि.ताण हुँति हु १५५ भवणाणि विणायव्वा
भवणेसु अवरपुत्वे भवणेसु तेसु'णेया भंभामुदिंगमहलमाणुससिजदुपसिद्धा
भायणदुमा वि णेया १४ भिपिणदणीलकेसा १०६ भिंगा भिंगणिभा तह १०८ भिंगारकलसदप्पण२१
| भिंगारकलसदप्पण४० १५६ भूधरणगिंदणामो
भूधरपमाणदीहा ७४ भूमितणरुक्खपव्वद८१ । भूसणदुमा वि णेया
बेगाउयअवगाढो बेगाउयउव्विद्धा
" " बेगाउयवित्थिरणा बेगाउवअवगाहं वे चउ चउ दु सहस्सा बेचदुबारससंखा बे चंदा इह दीवे बे चंदा बे सूरा बेचेव सदाणेया बेजोयणश्रवगाढा बेजोयणउच्चाणि य बेजोयण उप्पंइया बेदंडसहस्सेहि य बे दीवा बे उदधी वेधणुसहस्सतुंगा
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