Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 435
________________ १० चंदणे वचगे चावि चंदस्स सदसहस्स चंदो वसो कमलो चंपय सोय गहणं चंपय सोयवरणा चंपक पउरो चावणे संघे चाउव्वणो संघो चामरघंटाकिंकिणि चारुखेडेहि जुत्तो चारुगुणसलिलपरं चारुबाहरिवो चालीसं च सहस्सा चित्तविचित्तकुमारा चित्ते वइरे वेरुलिचितेमि पवरणगरं चुलसी दिलक्ख गुणिदे चुलसी दिलक्खदेवा चुलसी दिलक्ख संखा चुलसीदिसयसहस्सा चलसीदिं च सहस्सा चोत्तीस तीस चोदाल चोद्दसगसदसहस्सा चोदसणदीहि सहिया चोद्दसयस हस्से हि चो चोहसरय एवईणं छक्खंडकच्छ विजयं छक्खंडमंड सो छखंडे हि विभत्तो छच्चेव य इसुवग्गं छच्चेव सहस्सा इं छज्जाए जह अंते जोयणपरिहीणो छज्जोयण सक्कोसा Jain Education International ११ १२ १३ ૫ ३. ४ १० ८ ३ ६ १३ ε ६ ६ ११ ११ ४ ४ ४ ४ ११ ११ ३ 6 ू ε ह 120 ४ ७ is is 20 20 m ८ ८ २ ११ ४ ४ दीवपत्ती ११६ | छज्जोण सक्कोसा ະ ໕ ພໍ້ “ ૫ ६२ २०२ " १०४ २१६ "" "" "" हज्जोयणाय विडवी छज्जोया सकोसा ४४ ७४ | इट्ठमकालवसा छमकालस्ते १६७ १८४ १४० १७३ | छण्णउदिं च सहस्सा १४१ | छण्णवदिको डिएहिं ७४ | छणवइगामकोडी ११७ | छण्णवइगामकोडीहिं ११७ छण्हं कम्मखिदीगं ३६३ छत्तत्तयसिंहास - २४६ | छत्तत्तयसिंहास ए२४७ छत्तधयकलसचामर१६६ | छत्तीसं च सहस्सा १६० छत्तीसा तिरिसया ३११ |छदुमत्थेण विरइयं १२६ | छप्पराण रयणदीवा १६८ | छप्परणरय गदा वे हि ६८ | छप्परणं च सहस्सा छप्पण्णा बेरिसदा छन्भेदभागभियो छम्मा छम्मा से १६१ छपणउदा छच्च सया छ। उदिगामकोडीहि छम्मासेण वरगुहा छव्वीससया ऐया १५१ छवीसं च सहस्सा ७ छव्वीसा कोडीश्रो १६६ | छहि गदिं इसुवगं २८ | छहिं अंगुलेहिः पादो १५. छादाला तिष्णिसदा 5 छावट्ठा छच्च सया छावट्ठा सत्त सया १३९ १५० | छावहिं अडदालं For Private & Personal Use Only ww ३ m ६ ११ २ ४ १३ १२ ४ १३ 6 ू ε ७ १२ ८ 5 ७ ४ ७ ४ २ " १३ ३ ७ २ ११ १ १८ ८७ ५५. ११२ - ३१ १९६ १७० પર १६२ ३१. ६८ १०६ १६४ १२६ २०१ ४८ १६५ २४ ३२. २६ १०२. www.jainelibrary.org


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