Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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जंबूदीवपणत्तिकी प्रस्तावना
गा. ४, २५७८ - १७८१वीं गाथा में वर्णित मुख्य ( जम्बूद्वीपस्थ ) भेरु के सम्बन्ध में लिखा गया है। इस गाथा में धातकीखण्डद्वीपस्थ मन्दर नामक पर्वत का वर्णन है। इस मेरु का विस्तार तल भाग में १०००० योजन तथा पृथ्वीपृष्ठ पर ९४०० योजन है। यहां हानि वृद्धि प्रमाण १०००० - ९४०० है। यह
१०००
६८
९४०० - १००० ८४०००
= ० I
अवगाह के लिये है । भूमि से ऊपर, हानि वृद्धि प्रमाण, गा. ४, २५९७ - इस गाथा में दिये गये सूत्र का स्पष्टीकरण १८० वीं गाथा में दिया गया है । गा. ४, २५९८ – इस गाथा में दिये गये सूत्र का स्पष्टीकरण २०२५ वीं गाथा में दिया गया है। गा. ४, २७६१ - इस गाथा में दिया गया सूत्र वृत्त का क्षेत्रफल निकालने के लिये है' ।
वृत्त या समानगोल का क्षेत्रफल = V[D2] 2 × १० _ D±x/0
४
=
-(2) V १० जिसे हम x x± लिखते हैं ।
गा. ४, २७६३ - इस गाथा में वलयाकृति वृत्त अथवा वलय के आकार की आकृति का क्षेत्रफल निकालने के लिये सूत्र दिया है ( आकृति-३३ देखिये) ।
नगश्रेणी [सूच्यंगुल]
यदि प्रथम वृत्त का विस्तार D तथा द्वितीय का D2 माना जाये तो वलयाकार ( रेखांकित ) क्षेत्र का क्षेत्रफल
/{1D,-(D, -D,)]'×(P++D+)x.
[2D,
=/१०/(D2 + Dq)(D, – D,)
(४)
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२
[2]
१०
प्राकृति- ३३
गा. ४, २८१८- इस गाथा में दिये गये सूत्र का स्पष्टीकरण २०२५वीं गाथा में देखिये । गा. ४, २९२६—
-५१८ - १ = सामान्य मनुष्य राशि प्रमाण ।
२
२
जिसे हम [12 - 1 ] लिखते हैं ।
इस प्रमाण को इस तरह लिखा गया है :
जगश्रेणी में सूच्यंगुल के प्रथम और तृतीय वर्गमूल का भाग देने पर बो लब्ध आवे उसमें से एक कर्म कर देने पर उक्त प्रमाण प्राप्त होता है। यहां [सूच्येगुल] ५१८ को लिखने की शैली, पुष्पदंत और भूतबलि द्वारा संरचित षट्खंडागम के सूत्रों से मिलती जुलती है। जैसे, द्रव्यप्रमाणानुगम में सत्रहवीं गाथा में नारक मिथ्यादृष्टि जीव राशि के प्रमाण का कथन यह है । 66. "तासि सेदीर्ण विक्खभसूची अंगुल - बग्गमूळ विदियग्गमूलगुणिदेण ।”
१ बम्बूद्वीपप्रशति १०।९२.
२ जम्बूद्वीपप्रशति, १० १९१.
३ षट्खडागम —— द्रव्यप्रमाणानुगम, पृष्ठ १३१.
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