Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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चातुर्कीपिक भूगोल
१४१ और वक्र, तिब्वती नाम पशू, तथा चीनी नाम पो-स्सू वा फो-स्सू, तथा आधुनिक स्थानिक नाम बखिश' बखश और बखां उक्त संस्कृत नामोंसे निकले है।
प्राचीन कालसे अभी थोड़े दिन पहले तक पामीरके पश्चिमी भागवाली सिरीकोल झील (विक्टोरिया लेक) इसका उद्गम मानी जाती थी, जो पौराणिक सितोद सर हुई। इन दिनों यह अरालमें गिरती है, किन्तु पहले कैस्पियनमें गिरती थी । यही चतुर्दीपी भूगोलका पश्चिमी समुद्र हुआ।
गंगा- यह काश्मीरके उत्तरकी कृष्णगंगाके सिवा दूसरी नदी नहीं हो सकती, क्योंकि इसके उपकण्ठके निवासियोंमें 'दरदांश्च सकाश्मीरान्' अर्थात् दरद और काश्मीरका उल्लेख हुआ है। ये नाम वायुमें मेरुकी चारों दिशाओंकी नदियोंके वर्णनमें भाते हैं। यह हरमुकुट पर्वतकी प्रसिद्ध गंगावल झीलसे निकलती है जिसे आज भी वहांके लोक गंगाका उद्गम मानते हैं। इससे जान पडता है कि किसी समय कृष्णगंगा गंगाकी गिनती थी।
इसी गंगाकी रेतमें सोना भी पाया जाता है, इसीलिये उसका नाम गांगेम है। इस नदीका नाम जंबू भी है, क्योंकि जंबू नदीको गंगाके भेदोंमें गिना है। सोनेका नाम गांगेयके साथ बांधूनद भी है। पौराणिक भूगोलमें उसकी भौमिक स्थिति भी यही है। यही कारण है कि सप्तद्वीप भूगोलमें जंबूद्वीपकी नदी गंगाके बदले जंबू है।
निषध-इस पर्वतसे हिंदूकुश शृंखलाका तात्पर्य है। हिंदूकुशका विस्तार वर्तमान भूगोलके • अनुसार पामीर प्रदेशसे, जहांसे इसका मूल है, काबुलके पश्चिम कोहे-बाबा तक माना जाता है। " कोहे-बावा . और बंदे-बाबाकी परंपराने पहाडोंकी उस ऊंची शृंखलाको हेरात तक पहुंचा दिया है। पामीरसे हेरात तक मानों एक ही श्रृंखला है"। अपने प्रारम्भसे ही यह दक्षिण दावे हुए पश्चिमकी ओर बढ़ता है। यही पहाड़ मीकोका परोपानिसस है। और इसका पार्श्ववर्ती प्रदेश काबुल उनका परोपानिसदाय है। ये दोनों ही शब्द स्पष्टतः 'पर्वत निषध' के प्री रूप हैं, जैसा कि जायसवालने प्रतिपादित किया है।
'गिर निसा (गिरि निसा)' भी गिरि निषधका ही रूप है। इसमेंका गिरि शब्द एक अर्थ रखता है। पौराणिक भूगोलमें पहाड़की श्रृंखलाको 'पर्वत' और एक पहाड़को 'गिरि' कहते हैं
अपर्वाणस्तु गिरयः पर्वभिः पर्वताः स्मृताः । वायु. ४९। १३२. __ अंग्रेजी में क्रमशः माउंटन और हिल जिन अर्थों में आते हैं, ठीक उन्हीं अर्थों में ये शब्द आते थे। इस भांति गिरि निषधका अर्थ हुआ निषध शृंखलाका एक पहाड़ और वात भी यही है। लोक-पद्मके पश्रिमी पर्वत निषधके 'केशरायलों में त्रिशृंग नामका भी पहाड़ आता है। वह त्रिशृंग अन्य नहीं, यही तीन शृंगवाला 'गिरि निसा' अर्थात् कोहेमोर है । इससे निर्विवाद रूपसे सिद्ध होता है कि हिंदूकुश ही अपने यहांका निषध पर्वत है। पौराणिक वर्णनों में कहीं तो इस निषधको मेरुके पश्चिम और कहीं दक्षिण कहने का यह अर्थ होता है कि इसकी स्थिति मेरुके पश्चिम-दक्षिणमें है, वस्तुतः ऐसा है भी।
इलावृत वर्ष-पुराणों के अनुसार इलावृत चतुरस्र है और मेरु शरावाकृति है। इधर वर्तमान भूगोलमें पामीर प्रदेशका मान १५०४ १५० मील है, अर्थात् चतुरस्र है इसी प्रकार वह चारों ओर हिंदूकुश,
१ विश्वकोष २६१९१०. २ भुवनकोषांक पृ. ४३.
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