Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Author(s): A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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जंबूदीवपण्णसी
[ ८.६१
बहुभग्वजणसमिद्धा केवलणाणेपदीव मुणिवसहा' । णाणामुनिगणपठरा घणघण्णसमिद्ध कुछ उण्णा ॥ ६३ गंतून तदो पुग्वे होह महापण्यदो मणभिरामो | णामेण एक्कसेको कणय सिलाजालपरिणो ॥ ६४ बरकमलगभगउरो भस्समुद्दागारसंठिलो रम्मो । सीदातम्मि लुंगो नीलसमीचे हवे हीणो ॥ ६५ वणलंडसंपरिउडी मणिमयवरवे दिएहिं संजुतो । चदुकूडतुंग सिहरो जिणभवणविहूसिओ रम्मी ॥ ६६ बरतोरणसंछष्णो णाणापासादसंकुलो दिव्वो । तण्णामदेवसहिभो सुगंध गंधुधुरो पवरो ॥ ६७ युग्वेण तदो गंं होह महापुक्खलावदी विजभो । भागेद्दि विभत्तो पन्वदसरियाहि संजुत्तो ॥ ६८ गामाशुगामणिचि पट्टणदोणामुहि संछष्णो । कब्बडमबसहियो रयणायरमंडिमो दिब्वे ॥ ६९ रसारतोदेहि में वेदढणगेण मेडिओ दिग्वो । वष्पिणतलायणिव हो णाणाविधम्मधणणिचिनो' ॥ ७०
सालिपरो गोहुमजव मुग्गमाससंछण्णो" । अयसितिलमसुरणिवहो जीरये जुडेहि रमणीभो ॥ ७१ देसस्स तिलयभूदा णामेण य पुंडरीगिणी गयरी | बहुभब्वपुंडरीया" जस्थ मणुस्सा परिवसंति ॥ ७२
जनों से समृद्ध, केवलज्ञान रूप दीपकसे युक्त ऐसे श्रेष्ठ मुनियोंसे परिपूर्ण, नाना मुनिगणोंकी प्रचुरता से सहित, और धन-धान्यसमृद्ध कुलोंसे पूर्ण है ॥ ६१-६३ ॥ उसके पूर्व में जाकर मनोहर एकरौल नामका महा पर्वत है । यह पर्वत सुवर्णशिलाओं के समूह से वेष्टित, उत्तम कमलगर्भ के समान गौर, घोड़ेके मुखके आकारसे स्थित, रमणीय, सीता नदी के तटपर उन्नत, नील पर्वत के समीप हीन, वनखण्डों से वेष्टित, मणिमय उत्तम वेदियोंसे संयुक्त, चार कूटोंसे युक्त उन्नत शिखरवाला, जिनभवन से विभूषित, रग्य, उत्तम तोरणोंसे व्याप्त, नाना प्रासादों से बेष्टित, दिव्य, अपने जैसे नामवाले देवसे सहित, श्रेष्ठ और सुगन्धित गन्धसे व्याप्त है। ॥ ६४-६७ ॥ उसके पूर्वमें जाकर महा पुष्कलावती देश है। यह देश छद भागोंसे विभक्त, पर्वत व नदियोंसे संयुक्त, प्रामों व अनुग्राम से परिपूर्ण, पट्टनों व द्रोणमुखोंसे व्याप्त, कटों बमबोंसे सहित, रत्नाकरोंसे मण्डित, दिव्य, रक्ता- रक्तोदा नदियों एवं वेताढ्य पर्वत से मंण्डित, दिव्य, वप्रिण व तालाबों के समूहसे परिपूर्ण, नाना प्रकार गुण संयुक्त धनसे सहित; पुंडू (पौड़ा ) ईख व शालि धानकी प्रचुरतासे सहित; गेहूं, जौ, मूंग व उड़दसे व्याप्त; अलसी, तिल व मसूर के समूहसे संयुक्त और जीराके जूटोंसे रमणीय है ।। ६८-७१ ॥ इस देशकी तिलकभूत पुण्डरीकिणी नामकी नगरी है, जहां बहुतसे श्रेष्ठ भव्य जन निवास
१ प ब समिधा कवळाणाण. २ उश मुणिणिवहा. ३ उश सविद्ध. ४ उ रा जाणपरिणट्टो, प ब] जालपरिणट्ठा. ५ उश बहु. ६ उ श सुगंधगंध दूधुरो, प ब सुगंधुद्धदो. ७ उश गामाशुगमिणिचिओ. ८ भणवणनिचियो, प व धम्मधणणिविदो, श घणघण्णमिविओ. ९ उश पंडुच्छ प ब पुंछ १० उ श गेहून ११ माकणों, श मोस कण्णो. ११ प ब जीरहि. १९ उ प व श बहुभवपुंडरिया.
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